हिंदू पंचांगों और ज्योतिषीय ग्रंथों में आमतौर पर पंचक को अशुभ माना जाता है और इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। लेकिन कार्तिक मास में पड़नेवाले भीष्म पंचक को बेहद शुभ माना जाता है। इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। इस दौरान व्रत और पूजन से विशेष शुभ फल की प्राप्त होती है। इस साल कार्तिक मास की पूर्णिमा यानी 4 नवंबर से भीष्म पंचक शुरू हो रहा है जो 8 नवंबर तक रहेगा। पंचांग के अनुसार हर साल देव प्रबोधनी एकादशी से भीष्म पंचक व्रत शुरू होता है, जो पांच दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इसलिए इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। पांच दिनों का यह व्रत फलाहार करते हुए भी किया जा सकता है। भीष्म पंचक व्रत समस्त प्रकार के सुख भोग और आध्यात्मिक, आत्मिक उन्नति के लिए किया जाता है।
पौराणिक कथा
महाभारत युद्ध में जब पांडव जीत गये तो श्रीकृष्ण उन्हें भीष्म पितामह के पास ले गए। उस समय पितामह बाणों की शैय्या पर थे। श्रीकृष्ण ने उनसे पांडवों को धर्म का ज्ञान देने के लिए कहा। भीष्म पितामह ने पीड़ा के बावजूद पांडवों को ज्ञान दिया। माना जाता है कि भीष्म पितामह के ज्ञान देने का सिलसिला कार्तिक शुक्ल की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक यानी 5 दिनों तक चला। इसलिए इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भीष्म पंचक का व्रत भगवान श्रीकृष्ण ने शुरू करवाया था। इस दौरान कार्तिक पूर्णिमा तक व्रत रखा जाएगा।
इस तरह करें पूजन
देव प्रबोधनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर एक चौकी पर भगवान कृष्ण का चित्र स्थापित करें। भीष्म पितामह भी साथ हों, तो बेहतर होगा। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और दीवार पर मिट्टी से सर्वतोभद्र की वेदी बनाकर कलश की स्थापना करें। भगवान कृष्ण और भीष्म पितामह को चंदन लगाएं। साथ ही फल और फूल अर्पित करें। इसके बाद दीप जलाएं और ध्यान रखें कि यह दीपक पांच दिनों तक जलता रहे। अंतिम दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर हवन करें।