पौड़ी-उत्तराखंड राज्य गठन के 21 वर्षों में पृथक गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा संस्थान नहीं बनाए जाने पर गढ़वाली साहित्यकार नरेंद्र कठैत ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक से संस्थान गठन की मांग की। गढ़वाली साहित्यकार नरेंद्र कठैत ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर कहा कि गढ़वाली-कुमाऊंनी दोनों भाषाओं में 16वीं शताब्दी से ताम्रपत्रों, प्राचीन लेखों और असंख्यक दस्तावेजों में अमूल्य साहित्य सृजन हुआ है। वैदिक व संस्कृत के सन्निकता होने के कारण इन भाषाओं ने हिंदी नहीं नहीं, बल्कि अन्य भाषाओं की समृद्घि में भी अहम योगदान दिया है। 16वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान तक की गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा में सृजित साहित्य को संकलित किए जाने की आवश्यकता है।