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• Thu, 15 Jul 2021 9:03 am IST


गढ़वाल: दो भाईयों ने भेड़ की ऊन और कंडाली से बनाए कपड़े, शानदार कमाई..विदेश से भी डिमांड


घर का जोगी जोगना, आन गांव का सिद्ध। ये कहावत अपने उत्तराखंड पर एकदम सटीक बैठती है। राज्य स्थापना के दशकों बीत गए हैं, लेकिन प्रदेश का ग्रामीण शिल्प और दस्तकारी आज भी पहचान के लिए तरस रहे हैं। उदाहरण के लिए भेड़ की ऊन से बने हैंडलूम वस्त्रों को ही देख लें। एक वक्त था जब भेड़ की ऊन के व्यवसाय में उत्तराखंड की खास पहचान हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे हैंडलूम वस्त्र आउट ऑफ फैशन माने जाने लगे। आपको जानकर हैरानी होगी कि भेड़ की ऊन के जिन कपड़ों की हम कतई कद्र नहीं करते, उन्हें विदेशों में हाथोंहाथ लिया जा रहा है। उत्तरकाशी के एक गांव में रहने वाले के दो भाई हर महीने एक हजार रुपये प्रति मीटर के हिसाब से सौ मीटर से अधिक भेड़ की ऊन का हैंडलूम थान जापान भेज रहे हैं। डुंडा के वीरपुर गांव में रहने वाले मनोज नेगी और विनोद नेगी बदलते वक्त में भी अपने पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़े हैं। यहां तक कि दोनों भाई कंडाली से भी शानदार कपड़े बना रहे हैं, जिनकी फुल डिमांड है। इस गांव के ज्यादातर लोग जाड़-भोटिया और हिमाचल के किन्नौरी समुदाय से हैं।