अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य में 13 जून को लगी भीषण आग ने आठ परिवारों की खुशियों को छीन लिया। आग बुझाने गए चार वन कर्मियों की मौत के मामले की पड़ताल में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जिन कर्मचारियों को आग बुझाने के लिए भेजा गया, उन्हें खुद की सुरक्षा के लिए कोई संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए। आग बुझाने के लिए वन बीट अधिकारी, दो पीआरडी जवान, दो दैनिक श्रमिक, दो फायर वॉचर और वाहन चालक को भेजा गया था वह भी बिना संसाधनों के। उनके साथ कोई बड़ा अधिकारी क्यों नहीं गया। इन लोगों को पानी की एक-एक बोतल और एक-एक रैक (आग बुझाने का उपकरण) के साथ रवाना कर दिया गया।
दैनिक श्रमिकों और फायर वॉचरों को फायर प्रूफ कपड़े तो दूर, विभाग ने जूते तक उपलब्ध नहीं कराए। टीम के सदस्य पेड़ों की टहनियों को तोड़ रहे थे कि आग की भीषण लपटों ने उन्हें घेर लिया। ऐसे में सवाल उठता है कि बगैर संसाधनों के इन कर्मियों को धधकते जंगल में क्यों भेज दिया। अभयारण्य में तैनात कर्मियों की सुरक्षा के लिए उचित इंतजाम आज तक क्यों नहीं हुए। संसाधनविहीन कार्मिकों को धधकते जंगल में क्यों भेज दिया गया, इस तरह के कई सवालों के जवाब अब भी बाहर आने शेष हैं। कब तक बगैर संसाधनों के जंगल की आग में कूदकर कर्मचारी अपनी जान गंवाते रहेंगे, सरकारी तंत्र को इसका जवाब भी देना होगा।
बिनसर सेंचुरी में वनाग्नि के मामले की उच्च स्तरीय जांच चल रही है। जांच के बाद जो भी तथ्य सामने आएंगे उसके अनुसार उच्च स्तर पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
- हेम चंद्र गहतोड़ी, डीएफओ, सिविल सोयम, अल्मोड़ा।