Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 27 Feb 2023 11:04 am IST

राजनीति

आबकारी नीति लागू करने में सामने आयीं ये कमियां, जानिए किन वजहों से सलाखों के पीछे पहुंचे सिसोदिया...


केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 2021-22 की नई आबकारी नीति लागू करने के मामले में कथित भ्रष्टाचार को लेकर मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी की है। 

दरअसल, सिसोदिया पर सबूत मिटाने, खातों में हेरफेर, भ्रष्टाचार, अनुचित लाभ देने और लेने का आरोप लगाया गया है। मामले में जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो, दिल्ली सरकार ने अपनी नई नीति को ही वापस ले लिया और फिर से निजी हाथों की जगह सरकारी निगमों को शराब बिक्री करने की इजाजत दे दी। यानी कि पूरी योजना को ही सरकार ने वापस ले लिया था। तब से विपक्ष यह सवाल उठा रहा था कि, जब आबकारी नीति में भ्रष्टाचार नहीं हुआ था तो पूरी योजना क्यों वापस लेने पर सरकार मजबूर हुई। दाल में कहीं न कहीं काला तो है।

उपराज्यपाल के आदेश पर सीबीआई ने की कार्रवाई...

कथित अनियमितताओं के संबंध में आबकारी नीति 2021-22 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। प्राथमिकी में नामजद 15 व्यक्तियों और संस्थाओं में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का नाम भी शामिल किया गया था। सीबीआई इस मामले में कई नौकरशाह के घर पर छापेमारी की थी। मनीष सिसोदिया से भी कई बार इस संबंध में पूछताछ की गई थी।

नई शराब नीति में मिलीं ये कमियां...

जानकारी के मुताबिक, 17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति लागू की थी। दिल्ली में 32 जोन शराब की दुकान खोलने के लिए बनाए गया था। हर जोन में ज्यादा से ज्यादा 27 दुकानें खोलने की मंजूरी दी गयी थी। कुल मिलाकर 849 दुकानें खोली जानी थीं। सरकार का तर्क था कि इससे राजस्व में 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा।

144.36 करोड़ की लाइसेंस फीस माफ की गयी...

इसके अलावा कोरोना काल में नुकसान की भरपाई के नाम पर 144.36 करोड़ की लाइसेंस फीस माफ की गई। इसके अलावा आरोप था कि लाइसेंस फीस को बढ़ाए बगैर लाइसेंस धारकों को लाभ पहुंचाने के लिए कार्यकाल में भी बदलाव किया गया। पहले कार्यकाल एक अप्रैल 2022 से बढ़ाकर 31 मई 2022 तक किया गया। इसके बाद फिर एक जून 2022 से बढ़ाकर 31 जुलाई 2022 तक कर दिया गया।

कैबिनेट की बैठक बुलाकर लिया गया फैसला...

इतना ही नहीं इस फैसले में राजनिवास से किसी तरह की मंजूरी नहीं ली गई। बल्कि कैबिनेट की बैठक बुलाकर ही निर्णय ले लिया गया। ये भी सामने आया कि राजस्व बढ़ने की बजाए इसमें काफी कमी आई है। टेंडर दस्तावेजों के प्रावधानों को हल्का करके रिटेल लाइसेंसियों को वित्तीय फायदा पहुंचाया गया है।