हाथरस कांड से बाबाओं के साम्राज्य का एक और अध्याय सामने आ गया। इस घटना से पहले नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा उर्फ सूरज पाल का नाम बहुत से लोग जानते तक नहीं थे। लेकिन सत्संग के बाद मची भगदड़ में 120 से अधिक लोगों की मौत ने इन्हें न सिर्फ चर्चा में ला दिया बल्कि इनके अतीत की कई काली परतें भी खुलनी शुरू हो गई हैं।
सिपाही से बाबा बनने वाले सूरज पाल ने चमत्कार के दावे कर महज़ दो दशक में सौ करोड़ रुपये से अधिक का साम्राज्य खड़ा कर लिया। देश भर में इनके 24 से अधिक आलीशान आश्रम हैं, महंगी गाड़ियों का काफिला और सेवादारों की पूरी फौज है। सूटबूट वाली वेशभूषा ऐसी कि पहली नज़र में कोई नहीं कह सकता कि ये कोई बाबा है। 24 साल पहले मरे हुए को ज़िंदा करने का दावा कर ऐसे चमके कि आज लाखों भक्तों का परिवार खड़ा कर लिया है। भक्तों को लगता है कि इनके आश्रम का पानी पीने से बीमारियां दूर हो जाती हैं।
दुनियाभर में हर धर्म में फैले ऐसे सभी बाबाओं के पास अपने फॉलोअर्स को लुभाने का यही सबसे सटीक नुस्खा है। सभी खुद को भगवान का अवतार बताते हैं, अलौकिक शक्तियों का दावा करते हैं। समाज के दबे कुचले वर्ग के लोग चमत्कार की आस में बहुत जल्द आकर्षित हो जाते हैं। भक्तों की अंधश्रद्धा ही इनके फलने फूलने का सबसे बड़ा कारण है। लोगों की आंखों पर ऐसी पट्टी बंध जाती है कि वे अपने गुरु के बारे में सामने आ रहे गलत को भी गलत मानने को तैयार नहीं। इतनी मौतों के बाद भी सूरज पाल के भक्त कह रहे हैं कि इसमें उनका कोई दोष नहीं।
बाबाओं की तिलस्मी दुनिया से मेरा पहला वास्ता करीब 23 साल पहले पड़ा था। 2001 में मेरे डॉक्टर मित्र ने हरियाणा के एक बाबा के आश्रम चलने का निमंत्रण दिया। मैंने साफ कहा कि इन सबको नहीं मानता, पर वो इस ज़िद से अपने साथ ले गए कि उनसे मिलकर तुम अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस करोगे।
वहां पहुंचे तो देखा कि किलेनुमा डेरे में अस्पताल से लेकर फैक्ट्रियां तक थीं। बाबा की पहली झलक एक खचाखच भरे हॉल में दिखी, जहां उन्होंने जीवन बदलने वाला वही मंत्र दिया, जिसका दावा कर मित्र मुझे ले गए थे। शाम को कुछ खास लोगों से मुलाकात में उनके करीब जाने का मौका मिला। मेरे मित्र डेरे की क्लिनिक में अपनी सेवा देने जाते थे तो बाबा उन्हें पहचानते थे। उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया तो मित्र ने कहा कि मेरे साथ हैं, दिल्ली में पत्रकार हैं। यह सुनते ही बाबा के चेहरे के भाव एकदम बदल गए। उन्होंने तुरंत दूसरे अनुयायी की तरफ मुंह फेर लिया।
दिल्ली वापसी के दौरान मित्र ने पूछा कि कैसा महसूस हुआ। मैंने कहा तुम्हें बुरा लगे शायद पर मुझे खुद में ज़रा भी बदलाव महसूस नहीं हो रहा, बल्कि मैं हैरान हूं कि इतना पढ़-लिख कर तुम इस अंधभक्ति के जाल में कैसे फंस गए। मेरी बात उसे बुरी लगी पर लगता है कि कुछ वर्षों बाद जब बाबा के काले कारनामे बाहर आए और उसे जेल हुई, तब शायद मेरे मित्र को ज़रूर आभास हुआ हो कि वह कहां फंसे हुए थे।
दरअसल, हम सब अपने जीवन में किसी सहारे की तलाश में रहते हैं। हमारी इसी कमजोरी का फायदा ऐसे स्वयंभू बाबा उठाते हैं। जिस दिन हमने यह समझ लिया कि ईश्वर से संपर्क के लिए किसी मध्यस्थ की ज़रूरत नहीं, उसी दिन ये सारी दुकानें बंद हो जाएंगी।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स