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• Wed, 29 Nov 2023 11:03 am IST


ये रस्सी और वो खूंटा


दो दिन पहले ही किसी ने यह कहानी सुनाई थी कि कैसे बूढ़े सराय मालिक ने व्यापारी की मुश्किल चुटकी बजाते हल कर दी। व्यापारी की दिक्कत यह थी कि ऊंट बांधने के लिए खूंटे, रस्सी और हथौड़ा वगैरह सारे जरूरी सामानों का थैला पिछले पड़ाव पर छूट गया था। अब वह रात में अपने ऊंट को बांधे तो कैसे और उसे खुला छोड़े तो कैसे! सराय मालिक के पास वे सामान तो नहीं थे। मगर उसने मुश्किल हल कर दी यह बताकर कि ये सामान तुम्हारे पास नहीं हैं यह बात तुम्हें मालूम है, ऊंट को नहीं। व्यापारी को इशारा काफी था। उसने सारे कर्मकांड के साथ ऊंट को काल्पनिक रस्सी में, काल्पनिक खूंटे से बांध दिया। रात तो आराम से कटी। परेशानी सुबह हुई, जब सारी तैयारी के बाद भी व्यापारी सफर पर आगे नहीं निकल पा रहा था क्योंकि ऊंट उठने को तैयार ही नहीं था। उसके सारे प्रयास नाकाम हो गए तो फिर काम आया बूढ़ा सराय मालिक। उसने व्यापारी से पूछा, तुमने ऊंट को खोला? व्यापारी खीझ उठा, अरे बाबा, बांधा होता तब तो खोलता। कोई खूंटा, कोई रस्सी है ही नहीं तो खोलूं क्या? सराय मालिक की ओर से फिर वही डायलॉग, ‘यह बात तुम्हें मालूम है, ऊंट को नहीं।‘ खैर, व्यापारी ने फिर उसी निष्ठा के साथ काल्पनिक रस्सी खोल ऊंट को बंधनमुक्त किया और ऊंट सफर पर चलने को तैयार।

कहानी मुझे वैसी ही रोचक, प्रेरक और बचकानी लगी, जैसी आम तौर पर इस तरह की नैतिक कहानियां लगती हैं। नहीं मालूम था कि दो दिन के अंदर कहानी का सबक इतने क्रूर अंदाज में मेरी आंखों के सामने घटित होगा। खबर अखबार में छपी थी, लेकिन मामला पड़ोस की कॉलोनी का था। मेरे घर से कुछ ही फर्लांग की दूरी पर था वह घर जहां गवर्नमेंट हॉस्पिटल की वह नर्स रहती थी। खबर उसके पति की गिरफ्तारी की थी, इल्जाम था एक नाबालिग लडकी की हत्या का। लड़की नर्स के ही गांव की थी, जो घरेलू कामकाज के लिए वहां लाई गई थी। बेरोजगार पति ने उस लड़की से संबंध बनाए और जब प्रेग्नेंसी के बाद बात का खुलना तय हो गया तो उसकी हत्या कर दी। हत्या का वह पहला मामला था, लेकिन इधर-उधर मुंह मारने के उसके किस्से पहले से प्रचलित थे। मगर पति जितना बदनाम, पत्नी उतनी ही शराफत की पुतली। उसकी उदारता, नेकदिली और धर्मपरायणता सबकी जुबान पर रहती।

‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि ऐसे आदमी के साथ वह रहती क्यों है। खुद की सरकारी नौकरी है। वह तो दूसरी औऱतों की तरह मजबूर नहीं। लात मारकर बाहर क्यों नहीं कर देती उस निकम्मे आदमी को?’ सवाल मेरी पत्नी का था और जवाब दिया काम वाली बाई ने, ‘दीदी, सुहाग तो सुहाग ही होता है।‘ मुझे बूढ़ा सराय मालिक याद आया। क्या उसके पास होगी इस अदृश्य बंधन की कोई काट!

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स