झगड़े से तंग आकर पति ने पत्नी की हत्या की। इस तरह से बताई गई खबरें देखी या सुनी होंगी आपने भी। उसके बाद आपके दिमाग में क्या आएगा? बेचारा पति! इतनी झगड़ालू पत्नी रही होगी कि उसके पास उसे जान से मारने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं बचा होगा। पत्नियां होती ही झगड़ालू हैं तो काम से घर लौटा बेचारा थका हारा पति क्या करेगा? हत्या पर मजबूर कर दिया झगड़ालू पत्नी ने।
दूसरी खबर ऐसी है कि गर्लफ्रेंड की डिमांड पूरी करने के लिए चेन स्नैचिंग करने वाला पकड़ा गया। अब इसको सुनते ही अचानक गलती किसकी तरफ शिफ्ट हो गई? लड़की की तरफ। खबर सुनते ही लगेगा कि कितनी लालची गर्लफ्रेंड होगी जिसने उस बेचारे लड़के को अपने जाल में फंसा लिया कि उसे खुश करने के चक्कर में लड़के को चेन स्नैचर बना दिया। बेचारा लड़का अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी गर्लफ्रेंड की डिमांड को पूरा करने के लिए चोरी चकारी करने लगा। सब उस लड़की की गलती है, वरना आज इस लड़के से ऐसा क्राइम ना हुआ होता।
एक और खबर पर नजर डालते हैं जिसमें लड़की को बेवकूफ और अक्ल से पैदल साबित किया जाता है। लड़का फलानी लड़की को भगा ले गया। यही भाषा होती है अक्सर, जब हम ऐसी खबर कही देखते हैं या अपने किसी दोस्त या जानने वाले को बता रहे होते हैं। जैसे लड़की का अपना तो कोई दिमाग होता ही नहीं। लड़की के अंदर अपना सही गलत सोचने समझने की शक्ति है नहीं। तो ये लड़का उसे गाय भैंस की तरह चरा ले गया। फिर एक और तरह की खबर अक्सर सुनने को मिलती है कि महिला ड्राइवर ने एक को कुचला और अगर बदकिस्मती से एक्सिडेंट किसी महंगी कार से हुआ हो तो कहा जाता है, रईसजादी ने सड़क दुर्घटना में एक को कुचला।
आपने कहीं न कहीं पढ़ी ही होंगी ऐसी खबरें। हम ऐसी घटनाओं को इस तरह बयां क्यों करते हैं? क्या कभी किसी पुरुष ने आज तक किसी को सड़क में नहीं कुचला? रोज ही ऐसी कितनी दुर्घटनाएं होती हैं, लेकिन किसी में भी ये नहीं हाइलाइट किया जाता कि पुरुष ड्राइवर ने कुचला। दुर्घटना किसी के भी साथ हो सकती है, किसी से भी हो सकती है, लेकिन अगर महिला हो तो खबर बताने वाले पूरी भड़ास निकाल लेते हैं।
अब पहली खबर के बारे में सोचिए। पत्नी के झगड़े से तंग आकर पति ने पत्नी को मार डाला। यहां पर जो विक्टिम है, उसी को घटना का दोषी करार दिया है खबर बताने वाले ने। दूसरी खबर में भी लड़की दोषी है मानो उसने ही कहा हो कि मुझे घुमाने ले जाना है इसलिए चेन झपटकर आओ। चेन चुराने के बजाय लड़का मेहनत करके काम भी कर सकता था। इतना तय है कि किसी भी लड़की को ऐसा कैंडल लाइट डिनर खाते हुए उल्टी जरूर आ जाएगी जब उसे पता चलेगा कि उसका बॉयफ्रेंड किसी की गरदन काट कर या चेन झपटकर उसे डेट पर ले गया है।
लड़कियों से रेप की घटनाओं के बाद तो हम अक्सर घरों के अंदर बड़े बुजुर्गों समेत आसपास के पड़ोसियों, पान की दुकान में खड़े लोगों से लेकर बड़े बड़े नेताओं तक के मुंह से यह सुन लेते हैं कि लड़कियों को इतने बजे बाद रात को अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए था या लड़कियों को छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए थे। क्राइम होने के बाद सारा दोष पीड़ित लड़की का माना जाता है। क्योंकि क्राइम करने वाले से लेकर खबर बताने वाले और उसे पढ़ने वाले तक उस पैट्रियार्की सोच में जकड़े हैं, जिसमें न लिखने वाले को यह अहसास होता है कि वह गलत लिख रहा है और न पढ़ने वाले को समझ में आता है कि इस सोच से लिखी गई खबर महिला विरोधी है। महिलाएं इसीलिए अपने साथ हुए क्राइम के बारे में ज्यादातर मामलों में न तो बोल पाती हैं और न रिपोर्ट कर पाती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि आवाज उठाने का खामियाजा ही भुगतना पड़ेगा। अंत में पुरुष द्वारा किए गए क्राइम की वजह खुद उसे ही बता दिया जाएगा और इस बहाने अपनी मर्जी से उठने, बैठने, पहनने ओढ़ने के कुछ हक उससे वापस ले लिए जाएंगे। कुछ महिलाएं जो हिम्मत करके कुछ वक्त बाद आवाज उठाने की कोशिश करती हैं, उन्हें ये कहकर दबा दिया जाता है कि उसी वक्त क्यों नहीं कहा, इतने साल बाद अब क्यों कह रही हो?
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स