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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 22 Jul 2023 1:39 pm IST


कैसे ‘बुरी’ बनी दुनिया


भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है। हर काम के लिए पैसा चलता है। बिना लिए-दिए कोई सरकारी काम हो ही नहीं सकता। मौसम के अलावा ये कुछ ऐसे वाक्य हैं, जिनसे आप ऑटो, बस, मेट्रो व ट्रेन में बातचीत शुरू कर सकते हैं। शुरुआत करने भर की देर है। बस लोग भ्रष्टाचार गाथा शुरू कर देंगे और सफर कब पूरा हो गया पता ही नहीं चलेगा। सफर पूरा होने के साथ ही हम भ्रष्टाचार गाथा को सफर के साधन में ही छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। कभी-कभी ऐसी चर्चा डिबेट टीवी देखने के दौरान परिवारीजनों से होती है या किसी पार्टी में गंभीर दिखने के लिए लोग कोना पकड़कर ऐसी बातें शुरू कर देते हैं। लेकिन क्या हम वास्तव में इस मसले को लेकर गंभीर हैं?

कुछ सवालों के जरिए समझने की कोशिश करते हैं। क्या कभी किसी पत्नी ने अपने पति से कहा कि वह उसके नंबर-दो के पैसों से अपने बच्चों को नहीं पालेगी? या पति ने पत्नी से? क्या किसी युवक या युवती ने कहा कि उसके पिता या मां ने नौकरी के दौरान नंबर-दो का पैसा कमाया? और वह इस काली कमाई से जुटाए गए संसाधनों का हिस्सा नहीं बनना चाहता या चाहती। असल में ईगो डिफेंस मैकेनिज़म के तहत हम कुछ तर्क गढ़ लेते हैं। जैसे तनख्वाह इतनी कम थी और महंगाई इतनी ज्यादा, नंबर-दो की कमाई न होती तो कैसे जीते या माता-पिता ने जो किया हमारे भले के लिए ही किया। मुझे समझ नहीं आता जब सबके अभिभावक इतने अच्छे हैं तो दुनिया बुरी क्यों है? इस बुरी (भ्रष्ट) दुनिया को बुरा बनने में एक दिन तो लगा नहीं होगा। वैसे भी हमारे समाज में बड़ों खासकर अभिभावकों के मूल्यांकन की परंपरा नहीं है। यदि किसी बच्चे ने ऐसी कोशिश की भी तो उसे तत्काल बुरा, बागी करार दिया जाता है। लेकिन पैसा तो पैसा है। वह कैसे कमाया गया इससे फर्क नहीं पड़ता, एक तर्क यह भी बहुत प्रचलित है। सारा खेल इसी वाक्य में छिपा है। फर्क पूंजी के चरित्र से पड़ता है।

यदि आप करप्शन के जरिए सुख-सुविधाएं जुटाएंगे तो कैसे उम्मीद कर पाएंगे कि आपका बच्चा सही रास्ते पर चले? उसके स्कूल बैग में रखी नैतिक शिक्षा या मॉरल साइंस की किताब के सारे पाठ बेमानी हो जाएंगे। असल में नैतिक शिक्षा का विषय पढ़ाया स्कूल में जरूर जाता है पर बच्चा इसे सीखता परिवार से है। देर-सबेर सुख-सुविधाओं से रिसते हुए वे तर्क बच्चे के कानों तक पहुंचेंगे ही जिनके जरिए आपने नंबर-दो के पैसे को जस्टिफाई किया है। बच्चे ने सवाल किया तो आप उसे बागी करार देंगे (वैसे भी बागियों की संख्या काफी कम ही होती है)। बच्चे ने सवाल नहीं किया तो आप खुश रहेंगे और भ्रष्टाचार दूसरी पीढ़ी में जगह बनाना शुरू कर देगा। यह ‘बुरी दुनिया’ इसी तरह पीढ़ी दर पीढ़ी के बाकायदा प्रयासों से बुरी बनी है। इस चेन रिएक्शन को तोड़ना है तो शुरुआत इसी पीढ़ी से करनी होगी।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स