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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 10 Oct 2023 1:10 pm IST


क्यों नहीं बन पातीं लड़कियां सीईओ


क्योंकि हम ही उन्हें नहीं बनने देते सीईओ। और बात सीईओ की नहीं है, यह तो बस एक उदाहरण है। बात है कि आपकी बेटी, बहू, बीवी या मां क्या चाहती है वो हमारे लिए कभी जरूरी होता ही नहीं है। भले ही मां बाप ने पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया कि बेटी जर्नलिस्ट बन गई हो, लेकिन एक अच्छी कंपनी में नौकरी पा लेने भर से उसकी जंग पूरी नहीं होती। उसकी अगली लड़ाई होती है एक अच्छे घर में शादी करने की। अगर अपनी मर्जी से लड़का ढूंढ लिया और पैरंट्स ने उसे मंजूरी दे दी तो बात अलग है, लेकिन अगर अरेंज्ड मैरिज कर रही है तो फिर उसके करियर पर तलवार लटक जाती है।

पैरंट्स के सपने और लड़की के खुद के सपने सब के सब पर खतरा मंडराने लगता है। पता नहीं ससुराल वाले क्या कहेंगे? लो जी, कह दिया लड़के वालों ने, ये कैसी जॉब है जिसमें तुम्हें अक्सर रिपोर्टिंग पर जाना होगा, कोई टाइम फिक्स नहीं? तो फिर ऐसा करो जॉब छोड़ दो। वैसे भी तुम्हारी मामूली सैलरी से तो कुछ होना नहीं है। अब यहां पर लड़की और उसके घरवालों की असली अग्निपरीक्षा शुरू होती हे। क्या लड़के वालों की बात मान लें? बड़ी मेरिट लाई थी बेटी और इतनी अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही है। अभी तो शुरुआत ही की थी सैलरी लाने की। अभी पैसे की आदत नहीं पड़ी है बेटी को, तो अभी नौकरी छोड़कर शादी कर ले तो लाइफ बन जाएगी। बताओ क्या करें? छोड़ दो ऐसी नौकरी जिसकी वजह से शादी ही ना हो रही हो।

यहां पर पहली गलती लड़के वालों की तरफ से आई डिमांड की है और फिर दूसरी गलती उनकी इस नाजायज़ मांग के आगे घुटने टेकते लड़की के मां बाप की भी है। ये दो गलतियां सबसे पहले हम पकड़ लेते हैं, क्योंकि साफ दिख रहा है कि लड़के वाले कभी इस तरह की बात करते नजर नहीं आते कि हमारा लड़का नौकरी छोड़ देगा, अगर लड़के और लड़की की जॉब टाइमिंग मैच नहीं करती तो। उन्हें सबसे आसान और सीधा उपाय यही नजर आता है कि लड़की जॉब छोड़े। क्योंकि पैट्रियार्की सोच ने यही सिखाया है कि लड़कियों का मुख्य काम घर की देखभाल करना है।

नौकरी तो तब करे जब उसके कमाए पैसों की जरूरत हो घर को। हमारे पास सब कुछ है, बेटे की अच्छी सैलरी है तो लड़की संभाले घर। उधर लड़की के घरवाले इस मांग को मानते वक्त ये भूल जाते हैं कि उन्होंने बेटी को बचपन से पढ़ाया लिखाया, फीस भरी, सपने दिखाए, सपने पाले और उन्हें बेटी ने पूरा भी किया मगर उसके सपने लड़के वालों की इच्छा से बड़े नहीं हो सकते। वैसे भी माना जाता है कि लड़कियां त्याग की मूरत होती हैं। अब यहां पर रोल आता है लड़की का।

अगर वह अपने लिए, अपने करियर के लिए स्टैंड नहीं लेती है तो उसे समझौता करना होगा नौकरी छोड़कर। लेकिन अगर उसने ऐसी शादी से इनकार कर दिया तो वह कहलाएगी स्वार्थी। अगर नौकरी करने की इजाजत आज मिल भी गई है तो कल को बच्चे होने पर तो उन्हें लड़की को ही पालना होगा। कब तक बचोगी? नौकरी छोड़ो और बड़े हो रहे बच्चों को देखो, क्योंकि अगर इनके कम नंबर आए तो देखना अच्छा नहीं होगा। अपने लिए आवाज उठाना या अपनी मर्जी से करियर चुनना और उस रास्ते पर आगे बढ़ना जहां पुरुषों के लिए नॉर्मल है, महिलाओं के लिए ऐसा करने का सोचना भी बेहद रिस्की है। यानी अगर मिडिल क्लास लड़की को अपने सपने पूरे करने हों तो यही सोचा जाता है कि वह बड़ी बदतमीज लड़की है, जिसे सिर्फ अपनी पड़ी हुई है।

इतनी स्वार्थी और मतलबी कि अपने परिवार की इज्जत की भी परवाह नहीं। जब पैरंट्स मना कर रहे हैं इस फील्ड में जाने के लिए तो वह क्यों अड़ी हुई है। वह क्यों शादी न करके आगे पढ़ने की जिद कर रही है। बच्चे बड़े हो रहे हैं, वह जॉब करती क्यों है? बच्चे बिगड़ गए तो? बस घमंड में रहती है और सिर्फ अपने बारे में सोचती है जिद्दी लड़की। ये सब बोल बोलकर उसे गिल्ट यानी आत्मग्लानि महसूस करवाई जाती है ताकि वह अपनी लाइफ को अपने हिसाब से जीने की जुर्रत न करे और ऐसा करने का सोचने की वजह से जिंदगी भर मलाल ही करती रहे। यानी अगर वह अच्छी बेटी, अच्छी बहू या पत्नी का दर्जा पाना चाहती है तो उसे अपनी मर्जी से नहीं घरवालों की मर्जी से चलना होगा। बस फिर कहां से ऊंचे पदों पर आएंगी लड़कियां? कौन बनने दे रहा है उन्हें सीईओ?


सौजन्य से : नवभारत टाइम्स