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• Mon, 25 Sep 2023 1:07 pm IST


गहरी सांस लेने के गोल्डन फायदे


इस लेख की हेडिंग में गहरी सांस के प्रति आपका ध्यान खींचने के लिए मुझे ‘गोल्डन फायदे’ टर्म का इस्तेमाल करना पड़ रहा है क्योंकि इससे कमतर फायदों को लेकर आप गहरी सांस के बारे में क्यों पढ़ेंगे। अगर आप गूगल में ‘डीप ब्रीदिंग’ टाइप करेंगे, तो आपको इसके फायदों को लेकर हजारों लेख और विडियो मिल जाएंगे। जिंदगी की यात्रा में सांस की कारामाती शक्तियों का रहस्य किसी को समझ आता है, तो वह अनायास ही खुद को परम सत्य की खोज की दिशा में बढ़ते हुए पाता है। इतनी शक्तिशाली चीज के हाथ आने के बाद परम सत्य से कमतर चीज के पीछे कोई क्यों जाएगा। सांस का अर्थ है प्राण। प्राण जीवन है। सांस नहीं है, तो मौत है। जिस चीज के न रहने पर जीवन ही चला जाए, तो निश्चय ही वह जीवन से ज्यादा कीमती है, उससे ज्यादा ताकतवर है क्योंकि वही जीवन को संभव कर रही है। महात्मा बुद्ध ने सांस की शक्ति को जाना और फिर उस शक्ति के सहारे परम सत्य को पाया। सांस की महिमा अपार है। मनुष्य के पास एकमात्र सांस ऐसी चीज है जिसे वह चाहे तो कंट्रोल कर सकता है और चाहे तो उसके प्रति बेहोश बना रह सकता है। शरीर के दूसरे भीतरी अंगों पर उसका नियंत्रण नहीं है, लेकिन सांस के प्रति वह होशपूर्ण हो सकता है। जो सांस के प्रति होशपूर्ण हो गया उसके जीवन में सकारात्मक बदलावों को कोई शक्ति नहीं रोक सकती। होशपूर्ण सांस लेने वाला जीवन में बाकी सारे काम भी होशपूर्ण तरीके से करता है – उसका अपने इमोशंस पर, अपने विचारों पर नियंत्रण रहता है, उसका शरीर सुपर हेल्दी बनता है और उसका दिमाग भी पूरी तरह शांत और आनंद में रहता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी तरह की प्रतिकूल स्थिति में जरा भी नहीं घबराता। वह सहज ही जीवन का आनंद लेते हुए बड़े से बड़े मुश्किल कार्य करते हुए धन और यश हासिल करता है और प्रबोधन की दिशा में बढ़ता है।

सांस को गहरा करने के लिए जरूरी है कि आप सांस के प्रति बोधपूर्ण हों और यह बिना जुनून के संभव न हो सकेगा। उठते-बैठते, चलते-फिरते जहां जब मौका मिले आप अपनी दाहिने नासिका द्वार को बंद करके बाएं नासिका द्वार से लंबी सांस खींचें। इसे योग की भाषा में चंद्र भेदन प्राणायाम कहते हैं। इसके साथ-साथ आपको सांस लेते हुए एक हाथ पेट पर रखकर पेटा को फूलते हुए महसूस करना है। होता यह है कि 99 फीसदी लोग उथली सांस लेते हैं यानी छाती से सांस लेते हैं। फेफड़ों में सिर्फ 30 पर्सेंट वायुकोष्ठ (एलव्यूलाई) ऊपर के क्षेत्र में होते हैं जबकि 70 पर्सेंट निचले हिस्से में फैले होते हैं। वायुकोष्ठ का काम खींची गई हवा से ऑक्सीजन लेकर कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर छोड़ना होता है। इस बात को जान लें कि सांस के जरिए हमें ऊर्जा की अपनी कुल जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा मिलता है। इसी ऊर्जा का लगभग 25 पर्सेंट हिस्सा हमारे मस्तिष्क को चाहिए होता है। उथली सांस खींचने से अंदर ली गई हवा फेफड़े के निचले हिस्से तक नहीं पहुंच पाती। नतीजतन शरीर को सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। शरीर को नहीं मिलती, तो मस्तिष्क को कैसे मिलेगी और हम बिना ऊर्जा के हर काम को कल पर टालते हुए निस्तेज जीवन जीने को अभिशप्त हो जाते हैं।

इस तथ्य को भी जान लीजिए कि हम जितनी धीमे और गहरी सांस लेते हैं, हमें उतना लंबा जीवन मिलता है। इंसान का ब्रीदिंग रेट 12-18 प्रति मिनट होता है और उम्र 100 साल तक होती है। कुत्ते का ब्रीदिंग रेट 24-35 होता है और उसकी उम्र 10-14 साल होती है। कछुए का रेट 3-4 होता है और वह 300 साल तक जीता है। शरीर में जितना ऑक्सीजन मौजूद रहेगी उतने आप निरोगी रहोगी, ऊर्जा से भरे रहोगे। फिट रहने के लिए आप अगर बाकी काम नहीं करते और सिर्फ ब्रीदिंग को गहरा करने का अभ्यास करते हैं, तो इतने भर से ही आपको तंदुरुस्त और लंबा जीवन मिल सकता है। सिर्फ इतना नहीं। इसके कारण जो आपकी एकाग्र होने की शक्ति बढ़ेगी, जो मन शांत रहेगा और आप ओवरथिंकिंग से दूर बने रहते हुए एक आनंद से भरा जीवन जिएंगे, वह सब अलग।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स