मुख्यमंत्री रावत बने, पोखरियाल बने, ठाकुर बने या ब्राह्मण। जौनसारी बने, गढवाली बने या कुमाउंनी। न तुम्हारे गांव के नजदीक हेल्थ सेंटर में डाक्टर ने तैनात होना है और न ही तुम्हारे बच्चों की नौकरी लगनी है। चमोली और पिथौरागढ के किसी ठाकुर की मां या किसी ब्राह्मण का पिता अगर खेत में काम करते हुये खुदा ना ख़्वास्ता जख्मी हो जाये, तो याद रखना पहले सैकड़ों किलोमीटर धक्के खाकर जिला अस्पताल पहुंचना है। वहां भी जिला अस्पताल के स्टाफ ने रेफर देहरादून या हल्द्वानी ही करना है और दून अस्पताल पहुंचकर कितना भी ठाकुरपने में मुंछों पर ताव दे देना या परशुराम बन जाना, तुम्हारे जाति भाई ने एमआरआई मशीन यहां भी सरकारी अस्पताल में ठीक नहीं करवाई है। क्योंकि वो अपनी सत्ता बचाने में ही व्यस्त रहा और इस बीच उसे तुम्हारी जाति का भी ख्याल ही नहीं रहा। अब तुम जाओ इलाज कराने मैक्स या फोर्टिस। वहां करना मैं वहां का रावत या वहां का ब्राहमण। वहां कर लेना जमकर जातिवाद। और अगर चल जाये तो तुम्हारा जूता और मेरा सिर।
खोट नेताओं में नहीं, किसी राजनीतिक दल में भी नहीं है। खोट तुम में है। तुम्हारे सामाजिक तानेबाने में है। अगर आज के वक्त में तुम्हे अपनी जाती का मुख्यमंत्री चाहिये तो फिर तुम उस कबिलियाई समाज का प्रतिनिधित्व करते हो, जिससे गुजरकर तुम्हारे पुरखों ने इतिहास की कदराओं से निकल कर तुम्हे लोकतंत्र के लिये लायक बनाने की कवायद की। लेकिन तुम क्या निकले। वहीं कबिले की सोच वाले। हमारी जाति, हमारा गोत्र, हमारा कुटुम्ब और हमारा गांव। क्या मिला आखिर तुम्हे। महज आत्म सुख, जाति का सुख, एक खोखला आनंद। रैणी गांव में जब मौत टूटी तो क्या उसने जातिवाद किया ? केदारनाथ में जब प्रलय आई तो क्या उसने जाती या क्षेत्र देखकर अपना शिकार किया ?
बीमारी, गुरबत, अन्याय और अशिक्षा किसी जाती विशेष के लिये आरक्षित नहीं होती। उसके लिये सबको मिलकर लडना पडता है। जब कोई अस्पताल बनेगा तो वो ठाकुरों या ब्राहमण या किसी अनुसूचित जाती के लिये नहीं बनेगा। सबके लिये बनेगा न। क्या कोई अस्पताल कभी ये कहता है कि फलाणा क्षेत्र का मरीज यहां भर्ती नही होगा। तो फिर क्यों मिलकर संगठित नहीं हो जाते।
जो लोग धर्म के नाम पर वोट देते हैं। सुनो मेरे भाई, कोई धर्म खतरे में नहीं है। खतरे में तुम हो। जब यमन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में दोनों तरफ से अल्लाह के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हैं और फिर भी उनके धर्म में कोई खतरा नहीं आया तो तुम्हारे धर्म कैसे खतरे में हुआ। अपने को बचाव और अपने परिवार की सूध लो।
आने वाली पीढिया कभी ये याद नहीं रखेगी की तुमने उनके लिये मंदिर या मस्जिद विरासत में छोडी है। वो याद रखेगी कि तुमने उनके लिये क्या साहित्य, कला, प्रेम, स्कूल, विश्वविघालय और खेल के मैदान बनाकर छोडे हैं। कितने पुस्तकालय खडे किये है। समाज इनसे बनता है। आज से हजारों साल पहले के सभ्यता की दिवारों पर उकेरी कला, लिपि और औजार जमीन खोदने पर महफूज मिलती है। लेकिन उस समय के सभी धर्म नष्ट हो गये हैं न। तो फिर सोचो क्या जरूरी है।
बस करो अब...
साभारः मनमीत की फेसबुक पेज से