संसद के दोनों सदनों में मंगलवार को एक रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें केंद्र सरकार को कहा गया कि जम्मू-कश्मीर के पंच, सरपंच और दूसरे चुने हुए जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा और घर मुहैया कराया जाए। घाटी में 2018 में हुए पंचायत चुनाव और 2020 में हुए उपचुनावों में चुने गए जनप्रतिनिधि लगातार दहशत के साए में जी रहे हैं। दक्षिण कश्मीर में पिछले 15 दिनों में तीन सरपंचों की हत्या कर दी गई है।
आतंकवादियों ने इन जनप्रतिनिधियों को ऐसे वक्त में निशाना बनाया जब इस केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई दे रही है। देश में हुए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट से बीजेपी खासी उत्साहित है। ऐसे में पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को जम्मू-कश्मीर में भी चुनावी तैयारियों में जुट जाने को कह दिया है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने 7 मार्च के जम्मू दौरे में ही साफ कह दिया था कि राज्य के संगठन को बिना चुनाव की घोषणा का इंतजार किए हुए ही तैयारी में लग जाना चाहिए। नड्डा ने कहा कि पार्टी की राज्य इकाई की कोर कमेटी को हर पखवाड़े मिलकर आगे की रूपरेखा तय करनी चाहिए।
केंद्र सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि कश्मीर में विधानसभा चुनाव परिसीमन के बाद कराए जाएंगे। परिसीमन आयोग तेजी से काम कर रहा है और आशा है कि यह काम जल्द निपट जाएगा। परिसीमन आयोग ने हाल ही में अपनी अंतरिम रिपोर्ट पेश करके आमजन से सुझाव आमंत्रित किए हैं। जाहिर सी बात ऐसे में सीमापार बैठे आतंक के आकाओं की छटपटाहट बढ़ रही है। वो इस बात को लेकर बेचैन हैं कि कैसे इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खलल डाला जाए। दक्षिण कश्मीर के जिलों में 2, 9 और 12 मार्च को मारे गए सरपंचों की हत्या को इसी प्रयास के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। पंचायती संस्थाओं के जनप्रतिनिधि लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई के रूप में कार्य करते हैं। उनके बीच दहशत फैलाकर आतंकी अपने मंसूबों को अंजाम देना चाहते हैं। घाटी में पिछले 10 सालों में 24 पंच-सरपंचों की हत्या हो चुकी है।
2018 में हुए पंचायत चुनावों में दक्षिण कश्मीर की ज्यादातर सीटें खाली रह गई थीं। 2020 में हुए उपचुनावों के बाद इन प्रतिनिधियों का चुनाव हुआ। लेकिन इन जनप्रतिनिधियों में 300 से अधिक सरकारी आवासों या होटल में सुरक्षा के साए में रहते हैं। उनका आरोप है कि दहशत की वजह से वो न तो अपनी जनता की सेवा कर पाते हैं और न ही अपने परिवार के साथ रह पाते हैं। पिछले 15 दिनों में हुए तीन हत्याओं ने दहशत और बढ़ा दी है, हालांकि सुरक्षा एजेंसियां भी मुस्तैदी बढ़ा रही हैं।
केंद्र सरकार इन हालातों पर पैनी नजर रखे हुए है। जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर देश के गृह मंत्री अमित शाह भी बहुत सजग रहते हैं, इसलिए छह महीने में दूसरी बार जम्मू आ रहे हैं। वैसे तो वो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के रेजिंग डे के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे, लेकिन इन दौरान गृह मंत्री देश की सभी केंद्रीय सुरक्षा और सूचना एजेंसियां के साथ सुरक्षा की समीक्षा करेंगे।
वैसे तो सीआरपीएफ की स्थापना दिवस का कार्यक्रम पहली बार जम्मू में आयोजित करने के पीछे भी सरकार की मंशा यह संदेश देने की है कि वो किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार है। भारत के सबसे बड़े केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल सीआरपीएफ की सबसे अधिक तैनाती जम्मू-कश्मीर में है जहां वो आतंक-विरोधी ऑपरेशनों में बड़ी भूमिका निभाता है।
वैसे तो घाटी में सुरक्षा के हालात लगातार बेहतर हो रहे हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दो सालों में पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ के 176 प्रयासों को नाकाम करते हुए 31 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन टारगेट किलिंग से आतंकी घाटी में दहशत फैलाने के प्रयास करते रहते हैं। पिछले साल अक्टूबर में भी आतंकियों ने तीन दिन में पांच आम नागरिकों की हत्या कर दी थी, जिनमें दो शिक्षक भी थे। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने एक-एक कर सबका हिसाब चुकता कर लिया। जाहिर है कि अगर कश्मीर में जनप्रतिनिधियों को ठीक से सुरक्षा दी जाए तो देश के इस सबसे सुंदर इलाके की तस्वीर बदलने में देर नहीं लगेगी।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स