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• Mon, 20 May 2024 11:35 am IST


चीन और पाकिस्तान के बीच पिसता POK लगाएगा भारत से उम्मीद


पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के जिस हिस्से को पाकिस्तानी हुकूमत ने ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ का नाम दे रखा है, वहां हाल में दिखा बड़ा विरोध प्रदर्शन वहां की केंद्र सरकार द्वारा हड़बड़ी में घोषित की गई 23 अरब पाकिस्तानी रुपयों (भारतीय मुद्रा में लगभग 700 करोड़ रुपये) की सहायता के बाद शांत हो गया है। आंदोलन की दस मांगें थीं, जिनमें आटे और बिजली की महंगाई कम करने की मांग सबसे ऊपर थी। कहा जा रहा है कि मृतकों को मुआवजे समेत आंदोलन की सारी मांगें सरकार ने मान ली हैं।

हड़बड़ी की वजह
पिछले कुछ सालों में ऐसा देखा गया है कि पाकिस्तान सरकार प्रदर्शनकारियों के मरने-जीने को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती। इस बार राजधानी इस्लामाबाद से इतनी दूर उपद्रव भड़कने के दो दिन के अंदर ही उसने घुटने टेक दिए तो इसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि प्रदर्शनकारियों में से कुछेक ने भारत के झंडे लहराए और बयान दिया कि पाकिस्तान में उनका दम घुट रहा है। दूसरा पहलू IMF के एक दल के पाकिस्तान आने से जुड़ा था। उसका बयान आया कि ऐसी उथल-पुथल की हालत में कर्जे की नई किस्त जारी करने में मुश्किल आ सकती है।

एक-दूसरे के खिलाफ 

पाकिस्तान के कब्जे में चले गए जम्मू-कश्मीर रियासत के इलाके 21वीं सदी में पूरी तरह चूं-चूं का मुरब्बा बन चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के लिए हर संभव मौके पर छाती पीटता नजर आता है, लेकिन एक छोटी सी सचाई को उसके प्रतिनिधि कहीं चर्चा में नहीं आने देते कि उसके कब्जे में मौजूद जम्मू-कश्मीर के दोनों हिस्से एक-दूसरे के खिलाफ हैं। किसी भी मुद्दे पर वे एक साथ नहीं खड़े होते।

चीन की दिलचस्पी
15 से 65 किलोमीटर चौड़ी और 400 किलोमीटर लंबी वह पट्टी, जो पाकिस्तान में ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ कहलाती है, खुद को पूरी जम्मू-कश्मीर रियासत की भावनाओं की प्रतिनिधि बताती थी। लेकिन गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोगों ने एक दिन के लिए भी खुद को इस पट्टी से नहीं जोड़ा। पाकिस्तान सरकार भी उन पर राज करने का वही तरीका अपनाती रही जो उसने खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के कबाइली इलाकों के लिए अपना रखा है। कोई मानवाधिकार नहीं, कोई चुनाव नहीं, कहीं कोई बवाल हुआ तो पूरी बस्ती पर सामूहिक जुर्माना। यह स्थिति तब बदलनी शुरू हुई जब चीन ने इस इलाके में दिलचस्पी दिखाई। जाहिर है, इससे यहां के लोगों की सौदेबाजी भी बढ़ी।

शक्सगाम घाटी का हस्तांतरण
यह घटनाक्रम भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद 1963 में शुरू हुआ, जब पाकिस्तान ने कराकोरम और कुनलुन पर्वत श्रृंखलाओं के बीच पड़ने वाली शक्सगाम घाटी चीन को सौंप दी और चीन ने इसे अपने बागी प्रांत शिनच्यांग का हिस्सा बना लिया। ध्यान रहे, यह घाटी जम्मू-कश्मीर रियासत का अभिन्न हिस्सा रही है। इसे किसी तीसरे देश को सौंपने का कोई अधिकार पाकिस्तान के पास नहीं था।

रणनीतिक अहमियत
अपनी इस पहल से पाकिस्तान ने चीन को दक्षिण एशिया में पैर जमाने का मौका दे दिया। शक्सगाम घाटी अभी चीन के लिए रणनीतिक रूप से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। यहां से गुजर रही सड़क, कराकोरम हाईवे के जरिये वह न केवल अपने दो समस्याग्रस्त राज्यों तिब्बत और शिनच्यांग को जोड़ता है, बल्कि हिंद महासागर में अपनी निकासी के सारे इंतजाम भी कर रहा है।

CPEC का उपयोग
जम्मू-कश्मीर रियासत के इन दोनों इलाकों को मिलने वाला अमेरिकी संरक्षण 2005 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद से नाम मात्र का रह गया, और 2019 में एक बड़ा बदलाव यहां यह हुआ कि शक्सगाम घाटी होकर गुजरने वाले चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (CPEC) से चीनी माल ग्वादर बंदरगाह पहुंचने लगा। CPEC चीन के लिए बड़े रणनीतिक महत्व की चीज है। ईरान से तेल-गैस की पाइपलाइन इसी रास्ते अपने यहां ले जाने की उसकी योजना है।

पीछे हटना मुश्किल
यह बहुत आसान तो नहीं होने जा रहा है, इसका अंदाजा चीन को सिंध में कई बार और कश्मीर की नीलम घाटी में भी एक बार अपने इंजीनियरों पर हुए भीषण हमलों से हो चुका है। लेकिन जितना धन और सोच-विचार चीनी हुकूमत CPEC पर लगा चुकी है,उसे देखते हुए पीछे हटने का कोई रास्ता उसके पास नहीं है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स