मच्छरों और मक्खियों के जरिए फैलने वाली लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) ने पाकिस्तान बॉर्डर से लगे गुजरात के कच्छ जिले में महामारी का रूप ले लिया है। सौराष्ट्र के बनासकांठा समेत राज्य के 30 में से 20 जिले इसकी चपेट में हैं। अब तक राज्य में 1,400 से अधिक गाय-भैंसें मर चुकी हैं और लगभग 60 हजार बीमार हैं। कुछ इलाकों में संक्रमण की दर में कमी आई है, पर बीमारी अभी पूरी थमी नही हैं। बीमारी ने इन इलाकों में किसानों और पशुपालकों की कमर तोड़ दी है। पड़ोसी राज्य राजस्थान भी इस बीमारी की चपेट में है।
दूध उत्पादन पर असर
गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) रोजाना 2 करोड़ लीटर दूध खरीदता है। बीमारी फैलने के कारण इसमें रोजाना 50 हजार लीटर की कमी आई है। यह कमी मात्र 0.25 प्रतिशत ही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले गर्मी सीजन में गुजरात को दूध की कमी झेलनी पड़ सकती है।
यह वायरस ज्यादातर गर्भवती गाय-भैंसों को अपनी चपेट लेता है। इससे बच्चे पेट में ही मर जा रहे हैं। इस तरह से बच्चा भी नहीं रहा, और दूध भी गया।
गाय का गर्भकाल 283 दिन और भैसों की अलग-अलग प्रजातियों के अनुसार 281 से 340 दिन है। इस तरह से मार्च-अप्रैल के बाद से गुजरात में दूध की कमी देखी जा सकती है।
GCMMF उपाध्यक्ष वलम जी हंबाल के अनुसार, संक्रमित गायें ठीक होने के बाद भी 50-70% तक कम दूध दे रही हैं। पहले जितना दूध देने में उन्हें समय लगेगा।
राजस्थान में 100 से अधिक डेयरी हैं। जोधपुर और बाड़मेर में रोजाना 700 से 800 लीटर दूध का उत्पादन होता था, वहां अब मात्र 300 लीटर रह गया है।
स्थानीय लोगों की शिकायत है कि जून में जब कच्छ में संक्रमण बढ़ रहा था, तब पड़ोसी जिले के प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। कुछ ही हफ्ते में तेजी से सौराष्ट्र और आसपास के इलाकों में बीमारी फैलने लगी। शुरुआत से रोकथाम होती तो हालात इतने बुरे नहीं होते।
गुजरात और राजस्थान के अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड में भी एलएसडी के मामले आ रहे हैं। राजस्थान में अब तक 3 हजार से अधिक दुधारू पशुओं की मौत हो चुकी है और 1.20 लाख से ज्यादा के संक्रमित होने की खबर है। बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर सबसे प्रभावित जिलों में शामिल हैं। हालांकि अब प्रशासन सक्रिय हो गया है और रोकथाम के उपाय हो रहे हैं। वैक्सिनेशन शुरू हो गया है। नैशनल डेयरी डिवेलपमेंट बोर्ड की तरफ से गुजरात, राजस्थान और पंजाब में वैक्सीन की 28 लाख वॉयल भेजी गई हैं।
लंपी स्किन डिजीज कैप्री पॉक्स वायरस से फैलती है। जेनेटिकली यह गोट पॉक्स और शीप पॉक्स जाति का वायरस है, इसलिए महामारी पर काबू पाने के लिए इन्हीं के वैक्सीन लगाए जा रहे हैं।वैक्सीन की एक वॉयल में 33 डोज होती हैं। इसकी कीमत 600 रुपये है। इस तरह से एक पशु के लिए वैक्सीन की कीमत लगभग 20 रुपये होती है।गुजरात में महामारी से प्रभावित गांव के 5 किलोमीटर दायरे में फ्री वैक्सिनेशन किया जा रहा है।
LSD का इतिहास
एलएसडी को सबसे पहले 2012 में अफ्रीकी देशों में महामारी घोषित किया गया था। उसके बाद यह बीमारी मिडल ईस्ट, दक्षिण-पूर्व यूरोप, पश्चिम और मध्य एशिया तक पहुंच गई। हमारे देश में सबसे पहले 2019 में इसके केस मिले। सितंबर 2020 में महाराष्ट्र में पहली बार केस चिह्नित हुए। इस साल मई में पाकिस्तान में एलएसडी से 300 गायों के मरने की खबर है। इस बीमारी में गाय को तेज बुखार आता है और त्वचा पर छोटे-छोटे लंप (गांठ) निकल आते हैं। ये ठोस होते हैं। रक्त चूसकर मक्खी या मच्छर दूसरे पशुओं तक संक्रमण फैलाते हैं।
वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ के अनुसार यह जूनोटिक, यानी जानवर से मनुष्य में फैलने वाली बीमारी नहीं है। इसलिए संक्रमित गाय-भैंसों का दूध इस्तेमाल किया जा सकता है, पर अच्छी तरह उबालकर। एलएसडी से बचाव के लिए राज्य सरकारों को अब सतर्क रहना होगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स