Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 22 Feb 2023 1:24 pm IST


भविष्‍य में कैसे हो अर्बन प्‍लानिंग


जोशीमठ के पहाड़ में 24 दिसंबर, 2009 को एक टनल बोरिंग मशीन ड्रिलिंग ने एक एक्वीफर (जलभृत) को पंक्चर कर दिया। यह वहां सेलंग गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर हुआ। नतीजतन 700-800 लीटर प्रति सेकंड की दर से पानी छोड़ा गया। यह पानी 20-30 लाख लोगों की प्रतिदिन की जरूरत के लिए पर्याप्त था। इसके बाद जोशीमठ में भूजल स्रोत सूखने लगे।

पहाड़ी ढलान पर भूस्खलन के जमाव से बने जोशीमठ में अपशिष्ट जल प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है। वहां की अधिकतर इमारतों में सोकपिट बने हैं। इससे सीवेज जमीन में प्रवेश करता है और यह भूमि के संभावित डूब को बढ़ाता है। इसके अलावा वहां चल रही बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं ने स्थिति की भयावहता को और बढ़ा दिया है। तपोवन-विष्णुगढ़ बांध और हेलंग-मारवाड़ी बाईपास रोड ऐसी ही परियोजनाएं हैं। यह अपूरणीय क्षति आने वाले बुरे समय की बानगी है।

अफसोस की बात है कि पहाड़ी शहरी भारत में भूमि धंसने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। भारत में 12.6 फीसदी भूमि क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में आता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के अनुसार, अर्बन पॉलिसी इस स्थिति को और बदतर बना देती है। नतीजतन, इन क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका काफी बढ़ गई है। सवाल है कि ऐसे में किया क्या जाए।

भू-धंसाव से बचाव की दिशा में पहला कदम विश्वसनीय डेटा की दरकार पर ध्यान देना है।
हमें भूस्खलन जोखिम की व्यापक स्तर पर पहचान करने की जरूरत है। इस सिलसिले में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय स्तर पर एक पहल की है।
शहरी नीति-निर्माताओं को अतिरिक्त विवरण और स्थानीयकरण के साथ इसे और आगे ले जाने की आवश्यकता है।
उच्च भूस्खलन जोखिम वाले क्षेत्रों में बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
आगे का रास्ता

इस मुद्दे पर चुनिंदा उदाहरण आगे का रास्ता दिखाते हैं। मिजोरम में आइजोल, सेस्मिक जोन-V में आता है और बहुत खड़ी ढलानों पर बसा है। सात से अधिक तीव्रता वाला भूकंप आसानी से 1,000 से अधिक भूस्खलन को ट्रिगर करेगा और 13,000 इमारतों को ढहा देगा। इस शहर ने खतरनाक क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों को निर्देशित करने के लिए एक भूस्खलन कार्ययोजना और नियम बनाए हैं। शहर की भूस्खलन नीति समिति इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों से सहयोग लेती है। इसके साथ वह जोखिम वाले क्षेत्रों के बारे में लगातार अपडेट्स देने के लिए नागरिक समाज और विश्वविद्यालय के छात्रों से इनपुट मांगती है। वहीं, सिक्किम के गंगटोक में अमृता विश्व विद्यापीठम ने रीयल-टाइम भूस्खलन निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करने में मदद की है।

बाढ़ का खतरा

भूमि धंसने के अलावा बाढ़ का खतरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

अगस्त, 2019 में महाराष्ट्र के डोंबिवली में पलावा शहर (फेज I और II) में बाढ़ आ गई थी। वहां रहने वाले लोग अपने फ्लैटों में तब तक फंसे रहे, जब तक कि पंपों का उपयोग करके पानी नहीं निकाला गया। मौसमी बहाव की तीव्रता में वृद्धि का ग्राफ और मौसमी बाढ़ का प्रभाव एक साधारण तथ्य से बिगड़ गया था। दरअसल, 4,500 एकड़ में फैला यह इलाका मोथाली नदी के बाढ़ के मैदान पर बसाया गया था।
जुलाई 2021 में पणजी बाढ़ से प्रभावित हुआ। लगातार बारिश के कारण स्थानीय नदियां उफान पर आ गईं और घरों में बाढ़ का पानी घुस गया। इस मामले में भी शहरी नियोजन की गड़बड़ी एक बड़ी वजह थी। यह शहर मांडोवी नदी के बाढ़ के मैदानों पर दलदली भूमि पर बसाया गया था, जो कभी मैंग्रोव और उपजाऊ खेतों से घिरा हुआ था।
इस बीच, अन्य शहरों को भी निकट भविष्य में बाढ़ के उच्च जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली में यमुना बाढ़ के मैदान में 9,350 परिवार रहते हैं। आईपीसीसी की मार्च 2022 की रिपोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और बाढ़ के कारण कोलकाता को धंसने के एक गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ा। जाहिर है कि हमारे शहरों को बाढ़-रोधी उपायों की आवश्यकता होगी।

शहरी योजनाकारों को सीवेज और तूफानी जल निकासी नेटवर्क को बेहतर करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विशेष रूप से मौजूदा सीवेज नेटवर्क के कवरेज और गहराई को विस्तारित करने की जरूरत है।
समुद्री जलस्तर चढ़ने से उसके जोखिम वाले क्षेत्रों में तटीय दीवारों को मजबूती देनी होगी।
बाढ़-प्रतिरोधी निर्माण के साथ-साथ बाढ़ चेतावनी प्रणाली के सुदृढ़ीकरण पर अधिक खर्च करना आवश्यक है।
वर्षा के पैटर्न और तीव्रता में परिवर्तन के रूप में शहरी अधिकारियों को राहत प्रयासों को एकीकृत करने के साथ बाढ़ के हॉटस्पॉट और बाढ़ जोखिम मानचित्रों को निर्धारित करने के लिए सिमुलेशन क्षमता में निवेश की दरकार है।
पर्यावरण नियोजन

यदि हमारे शहर प्राकृतिक खुली जगहों को बढ़ाने के लिए पर्यावरण नियोजन को सक्रिय रूप से शामिल करते हैं, तो हम कई जोखिमों को कम कर सकते हैं। अर्बन मास्टर प्लान में जलवायु परिवर्तन और मौसम के अत्यधिक प्रभाव पर विचार करने की आवश्यकता है। इसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली को प्रभावी तौर पर विकसित करना खासतौर पर महत्वपूर्ण होगा। अंतिम तौर पर हम यह कह सकते हैं कि प्रत्येक शहर में एक आपदा प्रबंधन ढांचा होना चाहिए, जिसमें बड़ी सड़कें हों जो लोगों और सामानों को गति से शहर के अंदर और बाहर जाने की अनुमति दें। हमारी शहरी यात्रा एक चुनावी चक्र तक सीमित नहीं है, हमें एक बहु-पीढ़ीगत प्रक्रिया के साथ योजना बनानी चाहिए।
 
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स