पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी भारत-चीन तनाव को सैन्य वार्ता के जरिए हल करने की संभावना लगभग समाप्त हो चली है। आखिरी नतीजा जनवरी में हुई नौवें राउंड की बातचीत के दौरान निकला था, जब दोनों सेनाओं ने पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर अपने-अपने पारंपरिक ठिकानों पर जाने और बीच की जगह को कुछ समय के लिए ‘नो पैट्रोलिंग जोन’ बना देने का फैसला किया था।
उसके बाद फरवरी में दसवें राउंड की और बीते 11 अप्रैल को खत्म हुई ग्यारहवें राउंड की बातचीत न सिर्फ बेनतीजा रही, बल्कि ग्यारहवें राउंड के बाद दोनों पक्षों ने कोई साझा बयान भी जारी नहीं किया, जो छठे राउंड के बाद से वे लगातार करते आ रहे थे। भारी नुकसान किसी को लग सकता है कि ठीक है, बातचीत से कोई फायदा नहीं निकल रहा है तो इसे खींचने का कोई मतलब नहीं।
दोनों पक्ष इस कर्मकांड के बिना भी अपनी-अपनी जगह शांति से रह सकते हैं। लेकिन ऐसी राय बनाने के लिए आपका घटनाक्रम से पूरी तरह अनभिज्ञ होना जरूरी है। सचाई यह है कि भारतीय पक्ष पिछले साल की इसी तारीख की तुलना में अभी बहुत भारी नुकसान में है। चीनी कब्जे के चलते आठ जगहों पर भारतीय सैनिकों की नियमित गश्त या तो बंद है, या उसका दायरा सिकुड़ गया है।