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• Thu, 9 Nov 2023 4:45 pm IST


पटाखों की जिद


11 साल का मासूम मोहम्मद अजमत दिल्ली के शास्त्री पार्क में रहता है। पांचवीं में पढ़ता है। इस उम्र में बच्चे अक्सर भविष्य के लिए सपने बुनने लगते हैं। उनके सपने किसी नई फूटी कोपल की तरह कच्चे हो सकते हैं, लेकिन उनके दिल के वे उतने ही करीब होते हैं, जितने आपके हमारे सपने। कोई फिलॉसफर लाख कहे कि सपनों के लिए आंख जरूरी नहीं होती, लेकिन सच यह है कि बिना आंख के सपना देखना आसान होता होगा, उसे पूरा करना आसान नहीं होता।

खैर, बात अजमत की हो रही है तो पहले उसे पूरा करते हैं। यह मासूम 15 अक्टूबर को खुदा को याद करके घर लौट रहा था। नमाज पढ़ते वक्त उसे ये कतई इल्म नहीं था कि कुछ ही पलों बाद उसकी दुनिया यूं बदलने वाली है। रास्ते में किसी लापरवाह ने पटाखा फोड़ा और उसके एक हिस्से ने अजमत की दाईं आंख को हमेशा के लिए बुझा दिया। वह दर्द से तड़पता हुआ घर पहुंचा तो घरवाले उसे तुरंत एम्स लेकर गए। डॉक्टरों ने कहा कि अब उसकी आंख की रोशनी वापस नहीं आ सकेगी। इस मासूम का गुनहगार कौन है, पुलिस ये तक पता नहीं लगा सकी। एक पटाखे ने केवल अजमत को उम्र भर के लिए तकलीफ़ नहीं दी, उससे जुड़े हर शख़्स के दिल में जख्म बना दिया। यह खबर अखबारों में छपी। हजारों लोगों ने पढ़ी होगी, लेकिन इस तकलीफ को किस-किस ने समझा होगा, इसका अंदाज़ा आप लगा लीजिए।

ऐसी खबरें कागज काले करने के अलावा कुछ नहीं कर पातीं। अगर कर पातीं तो पिछले कई साल से दिवाली के दिनों में छप रहीं हादसों की सैकड़ों खबरों ने पटाखों के प्रति बेमतलब के मोह को कम कर दिया होता। हर साल सरकारें पटाखों की बिक्री रोकने के दिखावटी दावे करती है और हर बार ये पहले से ज्यादा बिकते और फुंकते हैं। जब से अदालतें इन्हें लेकर सख्ती दिखाने लगी हैं, तब से एक तबका इन्हें संस्कृति और परंपरा से जोड़कर और ज्यादा बजाने की अपील करने लगा है। यही तबका महीने भर प्रदूषण बढ़ने पर सरकारों को कोस रहा होता है। लेकिन दिवाली से ऐन पहले ऐसे विडियो की भरमार हो जाती है जहां फलां के त्योहार पर फलां परंपरा रोकिए, तब जानें, जैसे कुतर्क भरपूर जोश से परोसे जा रहे होते हैं।

पटाखे दिवाली की परंपरा में कब शामिल हुए, यह बहस छेड़े बगैर क्या हम यह नहीं सोच सकते कि पटाखे शोर, जहरीले धुएं और चोट लगने के खतरे के अलावा और देते ही क्या है? ऐसा रोमांच किस काम का जिसमें केवल और केवल आंख फूटने, शरीर जलने या घरों में आग लगने का खतरा होता हो। हम सब जानते हैं कि जो अजमत के साथ हुआ, वह हममें से किसी के भी बच्चे के साथ हो सकता है, फिर भी हम जिद का खूंटा गाड़कर बैठे हुए हैं। ऐसी नीम बेहोशी किस काम की?

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स