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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 4 Oct 2021 4:55 pm IST


हवाई सेवा में पास की नहीं, दूर की सोचिए, जानें कैसे दूर होगी एविएशन सेक्टर की मुश्किल


देश का उड्डयन क्षेत्र पिछले दशक से उड़ नहीं पा रहा है। एयर इंडिया घाटे मंइ चल रही है, जेट एयरवेज का दिवालिया निकल चुका है और इंडिगो के लाभ में भारी गिरावट आ रही है। कोविड ने इस संकट को और गहरा बना दिया है, लेकिन समस्या का मूल कहीं और ही है। भारत में उड्डयन की समस्या रेल और सड़क का विकल्प उपलब्ध होने से उत्पन्न होती है। दिल्ली से बेंगलुरु जाने के लिए सेकंड एसी का किराया 2935 रुपये है। इसकी तुलना में एक माह आगे की हवाई टिकट 3170 रुपये की मिल रही है जो कि लगभग बराबर है। अंतर यह है कि ट्रेन में 2 रात और 1 दिन का समय लगता है और भोजन का भी खर्च होता है, जबकि हवाई यात्रा में कुल 7 घंटे का समय लगता है। इसलिए लंबी दूरी की यात्रा में हवाई जहाज बेहतर है। इतना जरूर है कि यदि तत्काल जाना हो तो हवाई यात्रा की कीमत बहुत बढ़ जाती है और ट्रेन से यात्रा लाभप्रद हो सकती है।
क्षेत्रीय उड्डयन को सब्सिडी
अब लखनऊ से दिल्ली की यात्रा की तुलना करें। सेकंड एसी में ट्रेन का किराया 1100 रुपये है, जबकि एक महीने आगे की हवाई यात्रा का किराया 1827 रुपये है। हवाई यात्रा में 5 घंटे का ही समय लगता है लेकिन यह दिन का समय होता है। इसके मुकाबले ट्रेन में हालांकि 10 घंटे का समय लगता है, परंतु यह यात्रा रात में की जा सकती है, जिससे दिन का समय बचा रहता है। इसलिए दिल्ली से लखनऊ की यात्रा ट्रेन से करना बेहतर है। किराया कम है और रात्रि के समय का उपयोग हो जाने से समय की भी बचत होती है। इस तरह देखा जाए तो स्वाभाविक ही है कि क्षेत्रीय उड्डयन अपने देश में सफल नहीं हो रहा है, हालांकि सरकार पिछले दशक से लगातार यही प्रयास कर रही है।

2012 में सरकार ने उड्डयन क्षेत्र में विस्तार के लिए एक वर्किंग ग्रुप बनाया था, जिसने संस्तुति दी थी कि क्षेत्रीय उड्डयन को सब्सिडी देनी चाहिए। इसके बाद सरकार ने राष्ट्रीय घरेलू उड्डयन नीति बनाई, जिसमें छोटे शहरों में हवाई अड्डे बनाने की योजना बनाई गई और तीन वर्ष तक इन क्षेत्रीय शहरों को भरने वाली उड़ानों की फंडिंग की गई। हाल में डेलॉयट सलाहकार कंपनी ने भी छोटे शहरों में विस्तार की बात कही है। ये सभी संस्तुतियां असफल हैं क्योंकि ट्रेन के रूप में उत्तम विकल्प उपलब्ध है। वर्तमान समय में सड़कों में सुधार से एक और विकल्प उपलब्ध हो गया है। जैसे दिल्ली से देहरादून चार घंटे में सड़क से पहुंचा जा सकता है और लगभग उतना ही समय आपको हवाई जहाज से भी लगता है। इसलिए हमें क्षेत्रीय उड्डयन में निवेश करने के स्थान पर दूर के शहरों को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। इस दिशा में दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार की योजना सफल दिखती है। सरकार को चाहिए कि हवाई अड्डों तक पहुंचने के लिए हाइवे की गुणवत्ता में सुधार करे और सिक्यॉरिटी चेकिंग इत्यादि को सरल बनाए। मेरी जानकारी में ऐसे लोग हैं, जो इंग्लैंड में उड़ान के मात्र 15 मिनट पहले एअरपोर्ट पहुंचते हैं और हवाई जहाज में प्रवेश कर पाते हैं। इस दिशा में यदि सरकार सुधार करे तो दूर क्षेत्र के उड्डयन को और बढ़ावा मिल सकता है।
सरकार यह भी प्रयास कर रही है कि पर्यटन से संबंधित स्थानों जैसे असम और अंडमान में घरेलू उड्डयन को बढ़ावा दिया जाए। यहां समस्या अपने देश के पर्यटन क्षेत्र की मूल समस्याओं की है, जैसे- पुलिस व्यवस्था और चोरी-चपाटी की समस्याएं दिखती हैं। इसलिए पर्यटन आधारित उड्डयन तभी सफल होगा जब पहले हम पर्यटन को सफल बनाएं।

इस पृष्ठभूमि में एयर इंडिया का घाटे में जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जब निजी क्षेत्र की जेट और इंडिगो को ही घाटा लग रहा है तो इंडियन एयर लाइन को तो घाटा लगना ही है। सोशल मीडिया पर फिनोलॉजी ब्लॉग में कहा गया कि दूसरी उड्डयन कंपनियों की तुलना में इंडियन एयर लाइंस में कर्मचारियों का खर्च अधिक है। सिंपल फ्लाइंग ब्लॉग में कहा गया कि एयर इंडिया में भ्रष्टाचार व्याप्त है और कर्मचारी अकुशल हैं। रनवेगर्ल नेटवर्क के संपादकीय में कहा गया कि उपभोक्ता सेवा घटिया है। हाल में ही उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि कोविड संकट के दौरान एयर इंडिया ने अपने कर्मचारियों की छंटनी नहीं की। उन्होंने इस बात को एयर इंडिया की उपलब्धि के रूप में बताया जबकि वास्तव में अनावश्यक कर्मचारियों की छंटनी न करना शर्मनाक है। इसी प्रकार के निर्णय एयर इंडिया के घाटे का कारण हैं। इस दृष्टि से एयर इंडिया का निजीकरण करने का निर्णय सही है और हम आशा करते हैं कि सरकार शीघ्र ही इस दिशा में आगे बढ़ेगी।
सौ फीसदी निजीकरण
बताते चलें कि 2018 में एयर इंडिया के निजीकरण का प्रयास किया गया था, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने व्यवस्था की थी कि कंपनी के केवल 75 प्रतिशत शेयर निजी क्रेता को दिए जाएंगे और 25 प्रतिशत सरकारी अधिकारियों के हाथ में बने रहेंगे। इस प्रकार निजी कंपनी में सरकारी दखल जारी रहती। इस शर्त के चलते उस समय निजी क्रेता आगे नहीं आए थे। यह संतोष की बात है कि सरकारी अधिकारियों ने वर्तमान निजीकरण प्रक्रिया में अपने को अलग करना स्वीकार किया है और एयर इंडिया के 100 प्रतिशत शेयरों का निजीकरण करने को कहा है। आशा की जाती है कि एयर इंडिया के निजीकरण का ताजा प्रयास सफल होगा। लेकिन इस निजीकरण से उड्डयन क्षेत्र की समस्याओं का निवारण नहीं होगा। क्षेत्रीय हवाई अड्डों को समर्थन देने के स्थान पर सरकार को प्रमुख शहरों के हवाई अड्डों पर पहुंचने के लिए सड़कों को सुधारने की तरफ ध्यान देना चाहिए और हवाई अड्डे पर सिक्यॉरिटी को सरल बनाना चाहिए। तब अपने देश में लंबी दूरी का घरेलू उड्डयन सफल होगा अन्यथा राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों उड्डयन पस्त रहेंगे।