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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 26 Nov 2021 6:05 pm IST


क्या अगले साल तक LAC पर बना रहेगा तनाव


भारत और चीन, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 50 हजार से अधिक सैनिकों की आमने-सामने युद्ध की अवस्था में सबसे लंबी तैनाती कर दुनिया में एक कीर्तिमान बना चुके हैं। 10 अक्टूबर को दोनों देशों के बीच 13वें दौर की वार्ता विफल रही। इसके बाद 18 नवंबर को भारत और चीन के राजनयिकों की मीटिंग हुई। इसमें सैन्य कमांडरों के 14वें दौर की बैठक को हरी झंडी मिली। भारत और चीन विवाद सुलझने तक हालात को स्थिर बनाए रखने को मान गए हैं। लेकिन विवाद तो तभी सुलझेगा, जब दोनों में से कोई झुके।
दोनों ने किए युद्धाभ्यास
18 महीनों से दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर हैं। यह दूसरी सर्दी होगी, जब हालात ऐसे ही रहेंगे। इसी 16 नवंबर को भारतीय थलसेना और वायुसेना ने एक साझा अभ्यास कर यह देखा कि अगर आगामी सर्दियों में युद्ध छिड़ जाए तो अलग-अलग मोर्चों पर सैनिक साजोसामान पहुंचाने की उनकी तैयारी कैसी है। भारत ने बताया कि हाई इंटेंसिटी वाले इस अभ्यास का मकसद यह पता लगाना था कि उत्तरी सेक्टर और संभावित संघर्ष वाले इलाकों में जरूरी साजोसामान पहुंचाने की व्यवस्था को कैसे मजबूत किया जाए। इस अभ्यास में वायुसेना ने अपने सबसे बड़े अमेरिकी ग्लोबमास्टर मालवाहक विमानों (80 टन भार उठाने की क्षमता) के अलावा रूसी आईएल-76( 40 टन) और एएन-32 परिवहन विमानों (छह टन) का इस्तेमाल कर थलसेना के लिए जरूरी सैनिक साजोसामान और हथियार पहुंचाने की क्षमता परखी। वायुसेना ने एक साथ बीसियों टन सैनिक साजोसामान टकराव वाले इलाकों में पहुंचाने का अभ्यास किया। यह दिखाया कि युद्ध होने पर पर वह किस तरह से तालमेल कर इस काम को अंजाम देगी।
इससे पहले 8 नवंबर को चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने बताया था कि उसके जवानों ने एक सप्ताह तक पश्चिमी पठारों के इलाके में युद्धाभ्यास किया। चीन ने बताया कि नवंबर की शुरुआत में भारतीय सेनाओं ने एक बड़ा सैन्याभ्यास किया था, इसलिए उसने भी ऐसा ही किया। चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि चीनी सेना का यह कदम भारत के उकसावे वाली कार्रवाई के जवाब में था। इसमें दिखाया गया कि चीन अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम है। इससे पहले शिनच्यांग मिलिट्री कमांड ने संयुक्त फायर स्ट्राइक कन्फ्रंटेशन ड्रिल यानी पीएलए की जमीनी और हवाई सेना ने मिलकर युद्ध का अभ्यास किया।
साफ है कि लगातार दूसरी सर्दी के पहले भारत और चीन अपने-अपने कब्जे वाले इलाकों में युद्ध का शंखनाद कर रहे हैं। भारत और चीन की सेनाओं ने अपने शस्त्र भंडार की सबसे संहारक तोपों, मिसाइलों, लड़ाकू विमानों, मानवरहित विमानों यानी ड्रोनों को तैनात किया है। इनके साथ परमाणु हथियारों की ताकत भी है। भारतीय सेना की ओर से 300 किलोमीटर तक मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलें, 40 किलोमीटर तक मार करने वाली हॉवित्जर तोपें, परमाणु बम गिराने में सक्षम सुखोई-30 और रफाल लडाकू विमानों से बचाव के लिए चीन ने रूस से ही खरीदी गई एस-400 एंटी मिसाइलें तैनात की हुई हैं। भारतीय सेना भी जल्द से जल्द एस-400 मिसाइलों की तैनाती कर सकती है।
सवाल यह है कि दोनों देश एक-दूसरे को झुकाने के लिए केवल बंदरघुड़की ही दिखा रहे हैं या यह संदेश देना चाहते हैं कि वे युद्ध के लिए तैयार हैं। भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के टकराव वाले इलाकों- गलवान और पैंगोंग से तो दोनों सेनाएं पीछे हट चुकी हैं, लेकिन हॉट स्प्रिंग और देपसांग में चीन पीछे नहीं हटने की जिद पर अड़ा है। पिछले 10 अक्टूबर को भारत और चीन के सैन्य कमांडरों की 13वें दौर की बातचीत चीन के अड़ियल रवैये की वजह से विफल रही। चीनी पक्ष ने शायद यह सोचा होगा कि सर्दियों को देखते हुए भारतीय पक्ष कुछ समझौता करने को तैयार होगा। लेकिन भारतीय सामरिक नेतृत्व ने दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। उसने भारी वजन वाले हथियारों को ढोने की क्षमता दिखाई। इससे यह संदेश गया कि वह किसी भी क्षण चीनी सेना से दो-दो हाथ करने को तैयार है।
लेकिन दुनिया की दो आधुनिकतम सेनाएं एक दूसरे को सैन्य ताकत दिखाएं तो उससे भयावह आशंकाएं पनपती हैं। युद्ध न तो भारत चाहता है और न ही चीन। फिर भी चीन अपनी ताकत के दम पर भारत को डराकर झुकाना चाहता है। इसके लिए उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा के इलाके में सैनिकों की लंबे वक्त तक तैनाती के लिए मजबूत ढांचागत संरचनाएं बनाई हैं। भारतीय सेना ने भी जवाब में ऐसा ही किया है।
यह स्थिति कब तक बनी रहेगी? अगर यह जिद चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वजह से है तो माना जा सकता है कि कम से कम अगले साल अक्टूबर तक (जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की हर पांच साल में होने वाली 20वीं कांग्रेस होगी) भारत और चीन की सेनाएं इसी तरह आमने सामने बर्फीली पहाड़ियों पर जमी रहेंगी। चीन को पता है कि भारत युद्ध छेड़ने वाली कोई कार्रवाई नहीं करेगा क्योंकि इससे भारत की अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी।
क्या चाहते हैं चिनफिंग
दूसरी ओर, चिनफिंग पांच साल के अपने तीसरे कार्यकाल को सुनिश्चित करने के लिए न केवल भारत बल्कि दक्षिण चीन सागर और ताइवान में अपनी ताकत दिखा रहे हैं। वह हॉन्गकॉन्ग, तिब्बत और शिनच्यांग में भी अतिराष्ट्रवादी भावनाओं के जरिये जनता और पार्टी काडरों का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। आगामी पार्टी कांग्रेस के पहले चिनफिंग (जो चीन के सर्वशक्तिशाली मिलिट्री कमिशन के मुखिया भी हैं) ने पिछले कुछ महीनों में पीएलए के आला जनरलों की छुट्टी कर अभूतपूर्व तौर पर पार्टी के अंदर अपनी स्थिति मजबूत की है। पार्टी की 20वीं कांग्रेस के पहले वह खुद को माओत्से तुंग और तंग श्याओ फिंग से भी महान चीनी नेता के तौर पर स्थापित करने की जुगाड़ में ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहेंगे कि वह भारत के सामने झुक गए। इसलिए चिनफिंग चीनी 20वीं कांग्रेस से पहले भारत के खिलाफ अपना रुख और सख्त करते हुए दिखते रहना चाहेंगे।

सौजन्य से - नवभारत टाइम्स