बच्चे मन के सच्चे होते हैं। बच्चे भगवान का रूप होते हैं। बच्चों के बारे में हम अक्सर ऐसी ही बातें बोलते हैं, लेकिन व्यवहार में भी क्या हम बच्चों के कोमल मन का खयाल रख पाते हैं? गोवा के होटल में एक प्राइवेट कंपनी की सीईओ सूचना सेठ द्वारा अपने चार साल के बेटे की कथित हत्या के मामले से कई कठिन सवाल खड़े हो रहे हैं। अभी तक जो बातें सामने आई हैं, उनके मुताबिक सूचना सेठ ने पति से अपने खराब संबंधों के चलते ही इस हत्या को अंजाम दिया है। पुलिस को बच्चे की हत्या के पीछे फिलहाल किसी अन्य साजिश के होने का शक नहीं है। उसने बच्चे की मां को गिरफ्तार कर लिया है। एक कंपनी में सीईओ होने का सीधा अर्थ है कि महिला बहुत पढ़ी-लिखी है और जिम्मेदारी के साथ विभिन्न पदों पर काम करती रही है। जिम्मेदारी से काम नहीं करती, तो जाहिर है कि सीईओ नहीं बन पाती। लेकिन यह भी सच है कि उसके पति से संबंध अच्छे न थे। दोनों अलग रह रहे थे और उसे इस बात को लेकर बहुत तकलीफ होती थी कि बच्चा पिता से मिलता है। लेकिन क्या इतनी-सी तकलीफ के लिए कोई बच्चे को मार सकता है? अब जबकि पुलिस ने सूचना सेठ को गिरफ्तार कर लिया है, संभव है कि उसे अपने बर्ताव पर अफसोस हो रहा हो, लेकिन कानून तो काम करेगा ही। उसने जो किया, वह जीवनभर उसके मन में चीत्कार मचाएगा ही। उस मासूम बच्चे की रूह सवाल तो पूछेगी ही – क्यों मां? तुम तो मेरी मां थी, तुमने ही मुझे मार दिया? मेरा क्या कसूर था मां? इन सवालों का सूचना सेठ के पास कोई जवाब न होगा, क्योंकि शायद उसे भी इस बात का अहसास नहीं कि उसने बच्चे को क्यों मार दिया। यह सारा खेल उसके दिमाग का है। जब आप किसी से प्रतिशोध लेने की आग में जलते हैं, जब आप किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचते ही रहते हैं, तो दिमाग धीरे-धीरे उस सोच का गुलाम हो जाता है और वह अपनी तर्क शक्ति और सही-गलत की समझ को भूल जाता है।
इस बात को जान लीजिए कि हमारी सोच और हमारे इमोशंस, ये ही वे दो चीजें हैं, जो हमारे जीवन को संचालित करती हैं। यह हमारी सोचने की ताकत ही है, जो हमें पृथ्वी पर बाकी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बनाती है। लेकिन सोचने की दो दिशाएं होती हैं। एक पॉजिटिव सोचना होता है और एक नेगेटिव सोचना। नेगेटिव सोचने के लिए जोर नहीं लगाना पड़ता। वह सहज ही हो जाता है। हमारे मन में एक दिन में 60 हजार विचार आते हैं, जिनमें से 99 फीसदी नेगेटिव ही होते हैं। विचार बादलों की तरह होते हैं। वे आते हैं और चले जाते हैं। नेगेटिव विचारों से भी कोई तकलीफ न हो, अगर वे आएं और चले जाएं। तकलीफ तब शुरू होती है, जब हम किसी विचार को पकड़कर बैठ जाते हैं। जितना हम किसी विचार को पकड़कर रखते हैं, उतना ही वह इमोशन में बदलकर हमारे शरीर में उतरने लगता है और जितना वह शरीर में उतरता जाता है, उतना ही उसकी हम पर जकड़ बढ़ती जाती है। ऐसा नहीं था कि सूचना सेठ ने अपने चार साल के बच्चे को अचानक ही मार दिया। वह पिछले कई दिनों से अपने पति को सबक सिखाने के बारे में सोच रही होगी। जितना वह सोचती गई, उतना ही नेगेटिव सोच इमोशन में बदलकर उसे अपनी जकड़ में लेती गई। फिर एक पॉइंट आया कि उसने अपने सोचे हुए को वास्तविकता में बदल दिया।
अब सवाल यह है कि अगर इसी तरह नेगेटिव विचारों की बमबारी हम पर होती रहती है, तो हम उनसे बचें कैसे। बचने के लिए हमें सजग होने की जरूरत है। विचारों पर गिद्ध दृष्टि बनाकर रखने की जरूरत है। पर दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोग कुछ समय तो सजग रह भी लेते हैं, लगातार सजग नहीं बने रह पाते। इसके लिए माइंडफुलनेस और मेडिटेशन का अभ्यास चाहिए। दिक्कत यह है कि हम खुशी पाने के लिए बाकी सबकुछ करते हैं, लेकिन जो सबसे जरूरी है, उसी की ओर आंखें मूंदे रहते हैं। नतीजतन हम सजगता हटने से होने वाली दुर्घटनाओं का शिकार होते रहते हैं।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स