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DevBhoomi Insider Desk
• Mon, 1 Aug 2022 3:54 pm IST


कमला का हाथ तो टूटा पर हिम्मत नहीं


जब मैं छठी-सातवीं में थी, साइकिल चलाने की धुन सवार हो गई। पापा ने तो घर से निकलने पर ही पाबंदी लगा रखी थी। उनकी सोच ही कुछ अलग थी। उनका मानना था लड़कियां कुछ नहीं कर सकतीं। साइकिल, स्कूटर तो बिल्कुल नहीं चला सकतीं। लेकिन मेरे अंदर अपना शौक पूरा करने की भूख जग चुकी थी, सो मैं कहां मानने वाली थी।

पापा जैसे ही घर से जाते मैं उनकी 24 इंची साइकिल लेकर गली में निकल पड़ती। हमारी गली चौड़ी, समतल और कच्ची थी। साइकिल सीखने के बिल्कुल मुफीद। साइकिल ऊंची होने के कारण पहले कैंची चलाना सीखना पड़ा। मैं डंडे के बीच से पांव डाल पैडल मारने की कोशिश करती रही। यह सिलसिला हफ्तों चला। आखिर एक दिन मैंने संतुलन साध ही लिया। अब मैं साइकिल पर सरपट दौड़ती और मन सातवें आसमान पर। अपनी महान उपलब्धि का बखान पूरे मोहल्ले में करते मैं थकती नहीं थी।

पड़ोस की सखी कमला को जब यह सनसनीखेज खबर मिली, तो उसके मन में हलचल मच गई। उसने फौरन अपने पापा की साइकिल निकाली और चल पड़ी किला फतह करने। पुराने जमाने की साइकिल काफी भारी होती थी, और उसकी गली उबड़-खाबड़ थी। इसलिए वह गली से निकल मेन रोड पर प्रैक्टिस करने लगी। अभी दो-चार दिन ही बीते थे, एक दिन मुझे कमला के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी। मैं दौड़ते हुए पहुंची। कमला साइकिल लेकर सड़क किनारे गड्ढे में गिर गई थी। उसका बायां हाथ टूट गया था। कमला की अम्मा ने हाथ में सहजन की पत्तियां गर्म करके बांध दी, लेकिन डॉक्टर के पास नहीं ले गई।

कई दिन बीते। कमला का हाथ सूजन और दर्द से हिलना-डुलना बंद हो गया। उसकी अम्मा ने चिकवा (मोच ठीक करने वाला) बुलवाया और कहा, ‘इसका हाथ बैठा दो।’ चिकवा बांस की खपच्ची बांधकर टूटी हड्डी ठीक करना चाहता था। इसके लिए जबरन कमला का हाथ सीधा करता तो कमला दहाड़ मारकर चिल्लाती। उसकी चीखें सुनकर पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो जाता। मैं मन ही मन उसकी अम्मा को कोसती। कमला को डॉक्टर के पास ले गई होती तो बेचारी को जरा भी दर्द न झेलना पड़ता। आखिर कमला का हाथ टेढ़ा होकर रह गया।

मैंने तो मन ही मन सोच लिया था कि अब कमला कभी साइकिल नहीं चला पाएगी। मगर कमला ने साल बीतते ही अपने असहनीय दर्द को भुला दिया। फिर से साइकिल निकाली और इस बार चलाना सीख कर ही मानी। पतली सी कमला जब भारी-भरकम साइकिल पर चढ़ती, तो मैं उससे दूर हो जाती। उसकी डगमगाती साइकिल देख मैं डर जाती। कहीं मेरे ऊपर गिरी तो मेरी भी हड्डी टूट जाएगी। मुझे लगता, कमला ने साइकिल सीख तो ली मगर मेरी तरह कभी एक्सपर्ट नहीं हो पाएगी। बाद में मैं और कमला बहुत दूर हो गए। कई वर्षों बाद एक दिन भेंट हुई। वह अपनी बेटी को स्कूटी पर बैठाकर फर्राटे से चली जा रही थी। मुझे देखकर रुक गई। मैंने कहा, ‘वाह कमला! कभी साइकिल चलाते डगमगाती थी। अब स्कूटी फर्राटे से चला रही!’

कमला पहले तो खिलखिला कर हंस पड़ी। फिर बोली, ‘जीवन में अपनी कमजोरियों से निकलना जरूरी होता है। हाथ टूटने के बाद मैं बहुत डरी थी। मगर अपने डर से बाहर आई।’ फिर जाते-जाते अपनी गाड़ी संभालते हुए डायलॉग मारा, ‘गुड़िया! हाथ टूटने से एक बात जानी मैंने। डर के आगे जीत है।’ कमला फुर्र से चली गई। मैं देखती रही।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स