क्या कभी इंसान नरभक्षी था? इस सवाल ने वैज्ञानिकों और पुरातात्विकों को लंबे समय से परेशान कर रखा है। पिछले हफ्ते इसी मसले पर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में आई एक नई रिसर्च ने इस बहस को फिर गर्म कर दिया है। यह रिपोर्ट केन्या से मिली जांघ की एक हड्डी पर है, जिस पर कुछ ऐसे निशान पाए गए हैं, जैसा प्रफेशनल कसाइयों के वार से बनते हैं। हड्डी का यह टुकड़ा 1.45 मिलियन साल पुराना है। रिसर्चरों का दावा है कि तब इंसान अपनी प्रजाति का भोजन भी कर रहा था। रिसर्चर इसे अभी तक का सबसे निर्णायक सबूत बता रहे हैं। ब्रियाना पोबिनर स्मिथसोनियन नैशनल म्यूजियम ऑफ नैचरल हिस्ट्री के जीवाश्म विज्ञानी हैं और इस रिसर्च के पहले लेखक भी। उनके मुताबिक यह हड्डी बताती है कि इंसानी प्रजातियों के प्रागैतिहासिक रिश्तेदार जिंदा रहने के लिए एक-दूसरे को भी खा रहे थे।
इंसानी इतिहास के इस बर्बर तथ्य से अलग-अलग दौर में हमारी लगातार मुलाकात होती रही है। मसलन, भारत में शाहजहां के शासनकाल को ही याद करें, जब उत्तर भारत से लेकर गुजरात और दक्कन तक अकाल फैला। उस वक्त को उसी समय कलमबंद कर रहे उस्ताद अहमद लाहौरी के मुताबिक लोग इस कदर गरीब, लाचार, बेसहारा और भूखे हो चले थे कि एक-दूसरे को ही मारकर खा रहे थे। तब भारत आए एक डच यात्री वान ट्विस्ट ने अहमदाबाद से आगरा की ओर आते हुए इंसानी जिस्म के टुकड़ों की मंडी देखी थी। जगह का नाम सुसंत्रा था। इस मंडी से कोई चार-छह कोस आगे बढ़े तो इंसान को इंसान पकाते और खाते भी देखा था। एक और कहानी है, मगर पता नहीं कितनी सच है। मेरा नगालैंड वाला रूममेट अशुन बताता था कि उसने अपने बुजुर्गों से नगालैंड के कुछ आदिवासी समूहों के बारे में सुना था। उनके यहां साल भर में कुछेक दिन फिक्स रहते थे, जिस दिन ये आदिवासी निकलते थे। यह इनका कोई त्योहार होता था और डर से सब जगह लगभग हफ्ते भर से ज्यादा अघोषित कर्फ्यू लगा रहता था।
एक होती है मजबूरी और एक चीज होती है आदत। नरभक्षण पर चल रही बहस का एक यह भी प्रमुख बिंदु है कि क्या यह इंसान की आदत थी या उसकी मजबूरी? अशुन की कहानी में भी आदत नहीं, अनुष्ठान मिलता है। शाहजहां के अकाल में मजबूरी मिलती है। अधिकतर प्रागैतिहासिक निशान युद्ध की ओर इशारा करते हैं। आदत के बारे में अभी तक वैज्ञानिकों को इस बारे में बहुत कम या बेहद धुंधले सबूत ही मिले हैं। हालांकि इंसानी प्रजाति में से ही एक निएंडरथल पर यह आरोप है कि वे लोग ऐसा करते थे। 2016 में बेल्जियम के गोयेट की एक गुफा में पाए गई 40,000 ईसा पूर्व पुरानी निएंडरथल की हड्डियों के विश्लेषण से वैज्ञानिकों ने यह आरोप लगाया है। इस आरोप के साथ वैज्ञानिक यह बताना नहीं भूलते कि मौजूदा इंसानों में निएंडरथल के भी कुछ गुणसूत्र यानी डीएनए हैं। वे इशारा करते हैं कि आज इंसान भले ही खुद को कितना भी सभ्य बता ले, शायद उसने असभ्यता का साथ अभी भी नहीं छोड़ा है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स