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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 17 May 2022 2:15 pm IST


‘अग्निपथ’ से बच पाएगी पलटन की इज्जत?


भारतीय सेना में सबसे ज्यादा सुना जाने वाला शब्द है, पलटन की इज्जत। पलटन की इज्जत की खातिर सैनिक हर मुसीबत का सामना करता है और जान देने से भी पीछे नहीं हटता। सेना में पिछले दो साल से सैनिकों की भर्ती बंद है। सरकार ने इसकी वजह कोरोना को बताया है। सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे युवा सड़कों पर उतरकर बार-बार पूछ रहे हैं कि भर्ती कब शुरू होगी। सेना में इस वक्त करीब एक लाख पद खाली हैं और हर साल रिटायरमेंट के बाद करीब 60-65 हजार सैनिकों के पद खाली हो जाते हैं। अब जब कोविड को लेकर लगभग सभी प्रतिबंध हट गए हैं, तो क्या सेना में भर्ती शुरू होगी?

इसका कोई साफ जवाब नहीं दे रहा है लेकिन अग्निपथ योजना की चर्चाएं तेज हैं। प्रस्तावित अग्निपथ योजना में सीमित समय के लिए सेना में सैनिकों की भर्ती की जाएगी। प्रस्ताव है कि सैनिकों को जिन्हें अग्निवीर कहा जाएगा, वे तीन से पांच साल के लिए सेना में रहेंगे। जितने अग्निवीर होंगे उन्हीं में से करीब 50 फीसदी को सेना में परमानेंट किया जा सकता है और बाकी तीन या पांच साल में सेना से बाहर हो जाएंगे। अग्निपथ योजना के पक्ष में तर्क दिए जा रहे हैं कि इससे बहुत बचत होगी जिसका इस्तेमाल सेना के आधुनिकीकरण में किया जा सकेगा, क्योंकि इतने कम समय के लिए सेना में रहेंगे तो उन्हें पेंशन नहीं दी जाएगी। अभी सेना के बजट का एक बड़ा हिस्सा पेंशन में चला जाता है।

इससे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि अब सेना में जो भर्ती होगी वह पहले की तरह न होकर इस अग्निपथ योजना के जरिए ही हुआ करेगी। हालांकि सरकार की तरफ से अभी इसका कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है। लेकिन चर्चाओं के बीच ही कई सवाल भी हैं। सेना के रिटायर्ड अधिकारी भी सवाल उठा रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि तीन साल के लिए सेना में आने वाले युवक सेना को कितनी मजबूती दे पाएंगे? क्या वह पलटन की इज्जत के पीछे का भाव समझ और जज्ब कर पाएंगे? क्या उनमें उतनी ही बॉन्डिंग हो पाएगी जो किसी पलटन में होती है? रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच तो यह सवाल और भी मौजूं हो उठता है। कई एक्सपर्ट्स कह चुके हैं कि रूस अगर इस युद्ध में पीछे दिख रहा है तो इसके पीछे एक वजह उसके खराब क्वॉलिटी के सैनिक भी हैं। रूस के ज्यादातर सैनिक कंपलसरी सर्विस वाले हैं। वे अच्छे से ट्रेंड नहीं हैं। उनकी अनुभवहीनता और मनोबल में कमी की भी कई रिपोर्ट्स आईं। क्या अग्निपथ योजना के जरिए भारतीय सेना भी उसी तरफ बढ़ रही है? अगर हां, तो क्या खर्च कम करने का यह सही तरीका माना जा सकता है?

याद होगा जब सरकार ने तीन कृषि कानून लागू किए थे तो उसका जमकर विरोध हुआ था। लंबे आंदोलन के बाद वे कानून वापस ले लिए गए। तब कहा गया था कि सरकार ने इन्हें लागू करने से पहले किसानों की राय नहीं जानी। इसी तरह अगर भारतीय सेना के लिए अग्निपथ है तो सेना के अनुभवी लोगों की राय की एकदम अनदेखी नहीं की जा सकती। अगर कुछ दिक्कतें हैं तो उन्हें दूर करने पर विचार कर ही इस पर आगे बढ़ा जाना चाहिए। जो युवा सेना में महज तीन साल के लिए आएंगे क्या वह रिस्क लेने के लिए पूरी तरह तैयार होंगे? उनकी ट्रेनिंग किस तरह की होगी?

अभी तो सैनिकों की करीब 44 हफ्ते की ट्रेनिंग होती है। अगर अग्निवीर की ट्रेनिंग में कमी आई तो इसका सीधा असर सेना की क्षमता पर ही पड़ेगा। सैनिक ट्रेंनिंग के साथ ही अनुभव से भी काफी कुछ सीखते हैं। 6-7 साल के अनुभव के बाद वे मच्योर हो जाते हैं। लेकिन तीन साल के लिए ही सेना में रहने वाले युवा कितना अनुभव ले पाएंगे? यह स्कीम युवाओं के लिए सेना का रोमांच अनुभव करने के लिए भले ही सही हो लेकिन सेना के लिए यह कितनी सही है, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स