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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 5 Sep 2023 2:34 pm IST


वही बेगाने चेहरे हैं जहां जाएं जिधर जाएं


किसी के जख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बांधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बांधेगा

भाई-बहन के प्यार का त्योहार है रक्षा बंधन। सोशल मीडिया पर लोग तरह-तरह की फोटो, गाने और कविताओं के जरिए अपने-अपने भाई और बहन के प्रति प्रेम उड़ेल रहे थे। देखकर दिल बाग-बाग हो गया कि कितना प्यार है आपस में। तभी 2005 में हुए एक कानूनी बदलाव की याद आई कि पैतृक संपत्ति में भाइयों के साथ-साथ बहनों का भी बराबर का हक होगा। सोचा कॉमन सिविल कोड की बात तो चल ही रही है। चलो देखते हैं कि लोग बेटी-बहनों के हक से जुड़े मौजूदा कानून के बारे में क्या राय रखते हैं?

एक सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर लिख दिया कि सभी भाई तय करें कि पैतृक संपत्ति में बहन को उसका हिस्सा देंगे। उसके बाद एक हैशटैग लगा दिया रक्षा बंधन। लिखकर अपन तो उसे भूलकर लग गए कामकाज में। घंटे भर बाद दोबारा पोस्ट पर नजर पड़ी तो दंग रह गया। पोस्ट पर महाभारत छिड़ी हुई थी। पहला कमेंट एक बहन का आया- ‘ब्रिलियंट रक्षा बंधन पोस्ट एवर।’ एक दूसरी वीरांगना का संदेश आया- ‘वो क्यों देंगे, कानूनन हक है, भाई तय करें कि हकमारी नहीं करेंगे।’ तभी एक वकील साहब का कमेंट आया- ‘आप, नैतिकता बनाम विधि के मसले को बेवजह हवा दे रहे हैं। पाश्चात्य मॉडल को प्रोपेगेट करना सही है क्या?’ तब तक एक और भाई का तिलमिलाया हुआ कमेंट आया- ‘फिर बात केवल प्रॉपर्टी तक नहीं रहेगी। बहनें भी तय करें कि माता-पिता की सेवा की जिम्मेदारी भी बेटे की तरह की साझा करेंगी।’

सैकड़ों कमेंट आ रहे थे। सबको साथ-साथ पढ़ना और जवाब देना भी मुश्किल हो रहा था। बड़ी संख्या में एनआरआई और रिटायर्ड लोग भी हमलावर थे। मेरी पोस्ट के खिलाफ नहीं, बल्कि पोस्ट पर आ रहे कमेंट में एक-दूसरे पर। एक मित्र ने कमेंट किया, ‘यह मसला सिर्फ भाइयों के फैसले भर का नहीं। बहनों को भी तय करना होगा कि ननद को मिलने वाले हिस्से में कांय-कांय नहीं करेंगी।’ एक बुजुर्ग माता जी उनसे नाराज हो गईं। उन्होंने जवाब दिया- ‘यह क्या नया टंटा छेड़ दिया है? भाई लोग तो यही मानते हैं कि बहन की शादी पर जो खर्च कर दिया गया, वही उसकी पैतृक संपत्ति का हिस्सा था।’ तभी एक राणा साहब का व्यंग्य भरा नजरिया आया- ‘इस रक्षा बंधन पर अपने भाई को बताएं कि पांच सौ या पांच हजार नहीं, बल्कि संपत्ति में अपना उचित हिस्सा चाहिए और फिर पूरी तरह से प्रोटेक्टिव भाई की सुरक्षा देने की अवधारणा को छूमंतर होते देखिए।’ इस बीच एक मुस्लिम भाई ने इस्लाम की तारीफ करते हुए कहा- ‘उनके यहां पैतृक संपत्ति में बेटे के दो और बेटी का एक हिस्सा होता है और उनके खानदान में हमेशा इस नियम को फॉलो किया जाता है।’

तभी एक मुस्लिम बहन ने उन्हें काउंटर किया- ‘लेकिन अविवाहित पुत्री का बराबर का हिस्सा होता है।’ उन्हीं की बिरादरी के तीसरे भाई का कमेंट आया- ‘मां-बाप को जीते जी ही अपनी संपत्ति से बेटी का हिस्सा दे देना चाहिए और भाइयों पर यह फैसला लेने की गुंजाइश ही नहीं छोड़नी चाहिए।’ इस बीच एक दुखी पुरुष का कमेंट आया- ‘बेटे पर अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता सबकी जिम्मेदारी होती है। उनसे जूझते हुए वह कलेजा भी निकाल कर रख दे तो बहन-बहनोई के आडंबरपूर्ण प्यार का दिखावा नहीं कर सकता।’ यह हाल देखकर समझ आने लगा कि कॉमन सिविल कोड को लागू करना कितना मुश्किल काम होगा। अभी एक मौजूदा कानून को स्वीकार करने में एक बेहद प्यारे रिश्ते से जुड़े लोगों के बीच ही कितना टकराव है। बहरहाल संपत्ति पर हक को लेकर सोशल मीडिया पर दिखी इस जंग पर साहिर लुधियानवी का यह शेर और बात खत्म कि-
कोई तो ऐसा घर होता जहां से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहां जाएं जिधर जाएं

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स