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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 31 Mar 2022 1:26 pm IST


क्‍वाड को अमेरिका और चीन दोनों से खतरा


यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि में दुनिया के दो अहम संगठनों- क्वाड और ब्रिक्स को बचाने की इन दिनों गहन राजनयिक कोशिशें चल रही हैं। 19 मार्च को जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और 21 मार्च को ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की शिखर बैठक के बाद 24 मार्च को चीनी विदेश मंत्री वांग ई भारत आए। जापान और ऑस्ट्रेलिया ने यूक्रेन संकट पर भारत के रुख को नजरअंदाज करने का संकेत दिया ताकि चार देशों के हिंद प्रशांतीय संगठन क्वाड में कोई फूट नहीं पड़े। दूसरी तरफ चीन की कोशिश है कि इस साल के उत्तरार्द्ध में पेइचिंग में होने वाली ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) शिखऱ बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिरकत करें। मोदी यदि चीन नहीं जाते हैं तो ब्रिक्स के अस्तित्व पर आंच आएगी। टोकियो में होने वाली क्वाड शिखर बैठक में भाग लेना प्रधानमंत्री मोदी पहले ही मंजूर कर चुके हैं लेकिन वांग ई को भारत की ओर से कोई भरोसा नहीं दिया गया है कि मोदी चीन जाएंगे।

टोकियो शिखर बैठक

वैसे तो फुमियो किशिदा और स्कॉट मॉरिसन के भारत दौरे का घोषित उद्देश्य द्विपक्षीय सामरिक और आर्थिक रिश्तों को नई गहराई देना था लेकिन इस दौरान यूक्रेन संकट और क्वाड को इससे अलग रखने के मसले पर होने वाली चर्चा पर सामरिक हलकों की नजरें टिकी रहीं। भारत की चिंता है कि क्वाड को यदि दुनिया के अन्य मसलों में घसीटा गया तो हिंद प्रशांत के इलाके में चीन द्वारा पैदा सामरिक चुनौतियों से निपटने का संकल्प कमजोर होगा। क्वाड के अन्य सदस्य देशों ने भी इससे सहमति जताई है। इसी पृष्ठभूमि में दो महीने के भीतर जब टोकियो में क्वाड के चारों शिखर नेताओं की सशरीर मौजूदगी होगी तब यूक्रेन मसले पर जम कर चर्चा होगी। भारत पर यह दबाव बनाया जाएगा कि यूक्रेन के खिलाफ रूसी सैन्य हमले की स्पष्ट निंदा करने वाले बयान में शामिल हो लेकिन इसके पहले जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भारत के रुख के प्रति समझ दर्शाकर उसकी राजनयिक उलझनें कम कर दी हैं।

दूसरी ओर ब्रिक्स को बचाने को लेकर चीन की चिंताएं बढ़ गई हैं। जैसे भारत के बिना क्वाड की कल्पना नहीं की जा सकती वैसे ही भारत के बिना ब्रिक्स की भी कल्पना नहीं की जा सकती। लद्दाख सीमा पर चीनी सैनिक अतिक्रमण जारी रहने की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि चीन का निमंत्रण स्वीकार नहीं करते हैं तो ब्रिक्स शिखर बैठक नहीं हो पाएगी। ऐसे में अमेरिका विरोधी गुट को मजबूत करने की चीन की मंशा पर पानी फिरेगा। लेकिन भारत की प्राथमिकता क्वाड को बचाने की है। हालांकि ब्रिक्स का गठन दो दशक पहले जब हुआ था तब कई पर्यवेक्षकों ने इसे अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने वाले एक समहू के तौर पर देखा था। रोचक बात यह भी है कि ब्रिक्स के दो अन्य सदस्यों दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील ने भी रूसी सैनिक कार्रवाई की सीधी निंदा नहीं की है। लेकिन इसके बावजूद मौजूदा हालात में भारत रूस के समर्थन में ब्रिक्स के बैनर तले चीन के साथ खड़ा नहीं दिख सकता।

बहरहाल, क्वाड का सदस्य होने के बावजूद यूक्रेन संकट पर भारत का खुलकर रूस की निंदा नहीं करना अमेरिका को काफी खटक रहा है। गत तीन मार्च को अमेरिका ने क्वाड की वर्चुअल शिखर बैठक आयोजित की थी जिसका एक मकसद क्वाड की ओर से रूस की निंदा वाला प्रस्ताव पारित करवाने के लिए भारत पर दबाव डालना भी था। लेकिन भारत ने साफ कहा कि हिंद प्रशांत के चार देशों वाले इस गुट का फोकस हिंद प्रशांत इलाके पर ही सीमित रखा जाए अन्यथा क्वाड अपने घोषित उद्देश्य से भटक जाएगा और दुनिया के अन्य मसलों में उलझ कर रह जाएगा। इससे चीन को दक्षिण और पूर्वी चीन सागरीय इलाके में अपना प्रभुत्व मजबूत करने का मौका मिलेगा। भारत के इस रुख के मद्देनजर ही पिछली क्वाड वर्चुअल शिखर बैठक के बाद जारी साझा बयान में रूस की स्पष्ट निंदा वाला प्रस्ताव नहीं पारित किया गया। रूस के खिलाफ अमेरिकी सामरिक खेल में भारत ने उसके पक्ष में खेलने से साफ इनकार कर दिया तो इसकी कई जायज वजहें हैं। भारतीय सामरिक हलकों की यह शिकायत रही है कि क्वाड का सदस्य होने के नाते भारत भी यह अपेक्षा कर सकता था कि भारतीय सीमांत इलाकों में चीनी सैनिक अतिक्रमण के खिलाफ क्वाड की ओर से कोई निंदात्मक बयान जारी किया जाता। चीनी अतक्रिमण को रोकने के लिए कोई प्रत्यक्ष और ठोस कदम भारत के पक्ष में उठाने की बात तो दूर भारत का मनोबल बढ़ाने वाला बयान भी क्वाड के किसी शिखर नेता ने नहीं जारी किया।

चूंकि भारत के बिना क्वाड की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए भारत को यह देखना होगा कि वह क्वाड में अमेरिकी सामरिक हितों की पूर्ति करने वाला हथकंडा बन कर नहीं रह जाए। क्वाड के शिखर नेताओं की मौजूदगी वाली आगामी बैठक में भाग लेने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टोकियो जाएंगे तब भारत का जोर इसी पहलू पर रहेगा कि हिंद प्रशांत के महासागरीय इलाकों में अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों का पालन हो और इस इलाके को पूरी तरह समुद्री आवगमन के लिए खुला रखा जाए। इस इलाके में किसी एक देश यानी चीन की दादागीरी नहीं चले, क्वाड का यह भी एक बड़ा लक्ष्य है।

चीन का मकसद

इसी बड़े लक्ष्य की पूर्ति के लिए क्वाड को अपनी ऊर्जा लगानी होगी। जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ शिखर बैठकों के बाद जारी साझा बयानों में इसी के अनुरूप एक समान शब्दावली में संकल्प जाहिर किया गया है। चीन ने भारत के साथ अपने रिश्तों को पटरी पर लाने औऱ आला नेताओं के एक-दूसरे के यहां आने जाने का जो प्रस्ताव किया है उसकी टाइमिंग के मद्देनजर उसे क्वाड को कमजोर करने की एक कोशिश के रूप में भी देखा जा सकता है। लेकिन भारत की प्राथमिकता अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम रहते हुए क्वाड को मजबूत करने की ही रहेगी।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स