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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 15 Sep 2022 6:30 pm IST


टीबी से मुक्ति पाने के लिए लेना होगा लोगों का साथ


कोरोना महामारी की मुश्किल चुनौती से हम सबको काफी कुछ सीखने को मिला। इस दौरान एक अन्य संक्रामक बीमारी टीबी के खिलाफ भी हमारी मुहिम निरंतर जारी रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2018 में ही टीबी के खिलाफ मुहिम की गंभीरता को समझते हुए 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा था। इस लक्ष्य की समय सीमा खत्म होने में अब तीन साल से भी कम समय बचा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की उपलब्धियों का आकलन करते हुए हम अपनी रणनीति को बेहतर बनाएं।

हालांकि मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगी कि हमारे पास पहले ही टीबी उन्मूलन को लेकर कारगर नीतियां हैं जो सामुदायिक स्तर पर टीबी के असर को कम करने में उल्लेखनीय भूमिका निभा रही हैं। चाहे वह मुफ्त उपचार हो या फिर देखभाल, ये दोनों सुविधाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा निजी केंद्रों पर भी उपलब्ध हैं। हमने देश के दूरस्थ हिस्सों में भी टीबी रोग की स्क्रीनिंग और जांच सुनिश्चित की है। टीबी रोग की चिकित्सकीय जांच के साथ-साथ संक्रमित लोगों की पूर्ण रूप से मदद करने के लिए स्वास्थ्यगत देखभाल और सामाजिक सहायता संबंधी नीतियों को भी लागू किया है।

मैं टीबी कार्यक्रम की इसलिए भी प्रशंसा करना चाहती हूं कि इसमें हमेशा संक्रमित मरीजों के प्रति और उनकी सहायता से संबंधित दूसरी नीतियों के प्रति एक सकारात्मक रुझान दिखाया गया है। उदाहरण के लिए तेलंगाना में अरुभा प्रोजेक्ट के तहत स्वयंसेवी महिला समूह, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं और पंचायत सदस्यों के साथ सामुदायिक तौर पर टीबी सहायता समूह का गठन किया गया है। असम, छत्तीसगढ़, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में टीबी मरीजों को सामुदायिक स्तर पर परामर्श उपलब्ध कराया जा रहा है।

टीबी इलाज में पोषण की अहमियत को देखते हुए सरकार ने बेहद अहम निक्षय पोषण योजना लागू की है। इसके तहत प्रत्येक पंजीकृत टीबी संक्रमित को इलाज के दौरान डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए हर महीने 500 रुपये की मदद मिलती है। 2018 में शुरुआत होने के बाद से अब तक इस योजना में 57 लाख टीबी संक्रमितों को डीबीटी के जरिए 1,488 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है।

इन सबके अलावा टीबी उन्मूलन कार्यक्रम अब कम्यूनिटी सपोर्ट इनिशिएटिव शुरू करने जा रहा है। इसके तहत सहकारी संस्थाएं, कॉरपोरेट घराने, जनप्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठन और राजनीतिक दलों को टीबी उन्मूलन की मुहिम में जिला और प्रखंड को गोद लेने का मौका मिलेगा। इसका उद्देश्य समाज के अलग-अलग वर्गों के लोगों को टीबी मरीजों की मदद के लिए आगे आने को प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे टीबी संक्रमित लोगों को शारीरिक और मानसिक तौर पर बीमारी से उबरने में मदद मिलेगी।

टीबी रोगियों को ऐसे समर्थन की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें टीबी के उपचार के दौरान सख्ती से टीबी निरोधी दवाइयों के अलावा नियमित देखभाल की जरूरत होती है। टीबी के खिलाफ कठिन लड़ाई में एकजुटता की भावना का निर्माण करना भी इस इनिशिएटिव का लक्ष्य होगा। जो लोग मदद करना चाहते हैं, वे पोषण, जांच परीक्षण और व्यावसायिक प्रशिक्षण में अपनी पसंद और सुविधा के मुताबिक किसी एक क्षेत्र को चुन सकते हैं। यह मदद तत्काल प्रभाव से संक्रमितों के परिवार के सदस्यों को भी मिलेगी। ऐसी पहल लोगों को इस बीमारी से लड़ने के लिए उपयुक्त संसाधन मुहैया करा सकती है।

सामूहिकता की यह भावना टीबी के खिलाफ जन आंदोलन के आदर्शों के अनुरूप भी है। 2020 में भारत को टीबी-मुक्त बनाने का अभियान शुरू हुआ था, जिसमें पहली बार टीबी के खिलाफ जन आंदोलन का आह्वान किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य टीबी के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करना, बीमारी से जुड़ी कलंक की भावना को दूर करना और उपलब्ध सभी टीबी सेवाओं को राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत लाना था। मुझे विश्वास है कि जैसे-जैसे कॉरपोरेट प्रतिनिधियों, निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और अन्य प्रभावशाली सामुदायिक प्रतिनिधियों के साथ विभिन्न पृष्ठभूमि के अधिक से अधिक लोग इस आंदोलन में शामिल होंगे, हमारे बीच से टीबी खत्म होगा। टीबी हारेगा, देश जीतेगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स