कल मैंने एक कविता लिखी। जब तैयार हो गई तो उसे एक बाल्टी पकड़ाई, और कहा- जाओ कुएं से पानी भरकर लाओ। कविता मेरी ही थी, चोरी की नहीं थी सो बेचारी खुशी-खुशी बोरे में कुएं पर चली गई। जो लोग इस पर नाक-मुंह टेढ़ा कर रहे हों कि कविता कुएं पर नहीं जा सकती, वे जान लें कि कविता कहीं भी जा सकती है, कुछ भी कर सकती है। चाहे खुद की हो, या चोरी की हो। कविता के दम पर मैंने कुर्सी बदलते देखी है, घर और शहर तक। राजनीति हो या कूटनीति, कविता बड़े आराम से इन्हें संभाल लेती है। संतरी हो या मंतरी, हर कोई कवि होना चाहता है। आप राह चलते रिक्शेवाले से भी कविता सुन सकते हैं। मैं तकरीबन आधा दर्जन ऐसे रिक्शेवालों को जानता हूं, जो कवि हैं। सड़क उन्हें सादा कागज लगती है। पसली से चिपके पेटों में दम भरकर जब वे पैडल मारते हैं, तो कभी-कभार पीछे बैठने वाली सवारी तक कवि बन जाती है। गरीबी, लाचारी और आशा ने समूची सृष्टि को कवि बना दिया है, तो पीछे बैठने वाली सवारी की भला क्या बिसात!
कवि में दम होना चाहिए। बेदम कवि बहुत दिनों तक बीड़ी पीते हुए सबका मुंह ही टेढ़ा-सीधा करता रहता है। दम वाला कवि कभी कुछ टेढ़ा या सीधा करने के फेर में नहीं पड़ता। 99 का फेर क्या कम है पड़ने के लिए? और कविता? वो तो मार्केट में अब प्लास्टिक की मिलने लगी है। दो फ्रेंच गुलाब, एक ब्रिटिश, एक संथाली ले ली और थोड़ा सा मिट्टी का नमक मिला लिया। किनारे पड़े एक बड़े कवि से मैंने पूछा, कविता क्या हमेशा से ही ऐसी मिलावटी थी, या यह महज मेरी खामख्याली है? उन्होंने जवाब तो नहीं दिया, अलबत्ता यह जरूर बताया कि मंडी में अब सूखी-सड़ी बासी सब्जियां बहुत आ गई हैं। कुंजड़े उन्हें कविता कहकर बेच रहे हैं। यह कहकर वो सीलिंग फैन ताकने लगे। कवि की अदाएं कुछ ऐसी ही होती हैं। यदि कवि ऊपर पंखा ताक रहा हो, तो जरूरी नहीं कि वो डिप्रेशन में है या कविता सोच रहा है। हो सकता है कि वो वक्त से आंख चुरा रहा हो!
कहते हैं कि हर इंसान में एक शैतान छुपा होता है। बाज दफे तो कई-कई होते हैं। मैं कहता हूं कि हर इंसान में एक कवि छुपा होता है। बल्कि एक कवि में कई-कई कवि छुपे होते हैं। एक बात शीशे की तरह साफ होनी चाहिए कि कुकवि जैसी चीज इस संसार में कोई नहीं। हम किसी भी इंसान को बुरा नहीं कह सकते, चाहे वो कवि ही क्यों न हो! कविता बुरी हो सकती है, कुकविता हो सकती है। कवि तो बेचारा हालात का मारा है। और हालात तो आप को पता ही है कि आज कल ऐसे हैं कि हर कोई इन्हीं का मारा है। इसीलिए मैं कहता हूं, हर कोई कवि है। मेरी कविता वापस आ गई है। बता रही है, कुएं में तो प्लास्टिक के फूल भरे हैं, मगर सड़क अब भी सादा कागज है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स