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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 10 Sep 2022 4:50 pm IST


क्‍या अब रूस लगा रहा पश्चिम पर पाबंदियां


जब रूस ने फरवरी में यूक्रेन पर हमला बोला, तब अमेरिका और उसके नैटो सहयोगियों ने उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए। उन्होंने अपने यहां रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज कर दिया। यानी रूस का जो पैसा उनके यहां के बैंकों और संस्थानों में रखा था, उसे निकालने पर रोक लगा दी गई। रूस को अंतरराष्ट्रीय पेमेंट सिस्टम स्विफ्ट से भी बाहर कर दिया गया। इन पाबंदियों का मकसद रूस से तेल, गैस, कृषि उत्पादों और पैलेडियम का निर्यात कम करना था।

बाजी रूस के हाथ

आर्थिक जानकारों ने कहा था कि इन पाबंदियों से रूस के जीडीपी में 15 फीसदी तक की गिरावट आएगी, जिससे वह तबाह हो जाएगा। लेकिन आज हालात बिल्कुल उलट हैं।

अब तो रूस नैटो पर पाबंदियां लगा रहा है और उसने सदस्य देशों को गैस की सप्लाई घटा दी है। इससे यूरोपीय देशों को अप्रत्याशित ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ रहा है।
गैस और बिजली की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण यूरोपीय देश अपने नागरिकों को भारी सब्सिडी देने पर मजबूर हुए हैं। उनकी इकॉनमी गहरी मंदी में चली गई है। इससे सरकारी खर्च का हिसाब-किताब गड़बड़ा जाएगा।
यूरोप और ब्रिटेन के लिए आने वाला वक्त बहुत मुश्किल रहने वाला है। यूक्रेन युद्ध की वजह से एलएनजी की बढ़ी कीमतों की मार जापान, चीन, भारत सहित इसका आयात करने वाले सभी देशों पर पड़ी है, जिससे मायूसी बढ़ रही है। हां, रूस के कंस्यूमर्स पर इन सबका असर नहीं पड़ा है।
इसमें कोई शक नहीं है कि पश्चिमी देशों की पाबंदियों से रूस की इकॉनमी को झटका लगा है, लेकिन यह कोई बड़ा झटका नहीं है। यह भी लग रहा है कि मंदी में जा चुके नैटो के सदस्य देशों की तुलना में रूस इससे कहीं कम प्रभावित होगा। पश्चिमी देशों ने रूस पर पाबंदी यह सोचकर लगाई थी कि इससे वह तेल और गैस का निर्यात नहीं कर पाएगा। लेकिन जल्द ही पता चल गया कि रूस के तेल और गैस पर यूरोप की निर्भरता इतनी अधिक है कि वह तुरंत इसकी सप्लाई नहीं रोक सकता। अब वह इस साल के अंत तक रूस से इनकी खरीदारी रोकने की बात कर रहा है।

नैटो को इसका अंदाजा भी नहीं था कि दर्जनों देश यूक्रेन युद्ध को लेकर निष्पक्ष रवैया अपनाएंगे और वे रूस की आलोचना के लिए संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्तावों पर उसका साथ नहीं देंगे। लेकिन यहां तो यूरोप भी रूस से तेल और गैस खरीदने पर मजबूर हुआ। इसलिए पश्चिमी देशों के लिए भारत जैसे देशों को लेकर सख्त रवैया अपनाना मुश्किल हो गया, जिन्होंने रूस से कम कीमत पर तेल खरीदने का फैसला किया। इस बाजार में कई ऐसी इकाइयां सक्रिय हैं, जो ईरान, नॉर्थ कोरिया और वेनेजुएला को अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने में अरसे से मदद करती आई हैं। यही इकाइयां अब रूस को बड़े पैमाने पर तेल बेचने में मदद कर रही हैं।

इस बीच, प्रतिबंधों की वजह से ब्रेंट क्रूड की कीमत 80 डॉलर से बढ़कर 130 डॉलर तक पहुंचने के बाद अब गिरकर 95 डॉलर प्रति बैरल के करीब चल रही है।
तब से कई देशों की मुद्राओं की तुलना में डॉलर करीब 20 फीसदी मजबूत हुआ है। इसलिए तेल का आयात करने वाले देशों को इसकी कहीं अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। इससे रूस को छोड़कर दुनिया भर के कंस्यूमर्स प्रभावित हुए हैं और उन देशों में मंदी की आहट सुनाई देने लगी है।
जहां तक प्राकृतिक गैस की बात है, इसकी तेजी ने सबको हैरान कर रखा है। यूरोप की निर्भरता रूसी गैस पर काफी अधिक है। यूक्रेन युद्ध के बाद जब प्रतिबंध लगाए गए, तब इसके असर के बारे में बहुत सोचा नहीं गया।
नैटो ने तब नॉर्डस्ट्रीम 2 पाइपलाइन का कंस्ट्रक्शन बंद करने का भी एलान किया। इस पाइपलाइन के जरिये बाल्टिक सागर होते हुए रूस से गैस जर्मनी पहुंचनी थी। लेकिन नॉर्डस्ट्रीम 1 से जो गैस आ रही थी, उस पर भी यूरोप की काफी निर्भरता थी।
आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से रूस इस पाइपलाइन से गैस की सप्लाई कई बार रोक चुका है। पहले उसने सप्लाई मेनटेनेंस के नाम पर रोकी और बाद में भू-राजनीतिक वजहों से।
यानी अब रूस पश्चिमी देशों पर प्रतिबंध लगा रहा है और पाबंदियों की शुरुआती कहानी पूरी तरह पलट चुकी है। बड़ी बात यह है कि रूस के प्रतिबंधों से यूरोपीय देशों को कहीं अधिक नुकसान हो रहा है, जबकि नैटो की पाबंदियों से रूस को बहुत हानि नहीं हुई है।

2024 तक चलेगा युद्ध?

यूरोप में गैस की कीमत 343 यूरो प्रति एमडब्लूएच तक पहुंच गई है, जो 2020 के निचले स्तर से 20 गुना अधिक है। बिजली कंपनियों को इस वजह से टैरिफ बढ़ाना पड़ रहा है और सरकारें बिजली की दरों की सीमा तय करने की मांग कर रही हैं। आखिरकार यूरोपीय देशों को नागरिकों को पेट्रोल, गैस और बिजली की ऊंची दरों की मार से बचाने के लिए भारी सब्सिडी देनी पड़ेगी।

क्या इस संकट की वजह से नैटो देश यूक्रेन युद्ध को लेकर अपना रुख बदलेंगे और कोई समझौता करेंगे? मुझे ऐसा नहीं लगता। उसकी वजह यह है कि पश्चिमी देश जेलेंस्की का साथ नहीं छोड़ सकते, जो रूस से फरवरी से पहले की स्थिति बहाल करने की मांग कर रहे हैं और उनकी यह बात ठीक भी है। पूतिन भी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि इससे उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी, भले ही नैटो यूक्रेन को संगठन में शामिल ना करने की गारंटी ही क्यों ना दे। इसलिए भले ही पश्चिमी देशों और रूस दोनों को ही पाबंदियों से नुकसान हो रहा है, फिर भी ये आगे जारी रहेंगी। इसलिए अगर यह युद्ध 2024 तक भी चलता है तो हैरान नहीं होना चाहिए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स