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• Sat, 23 Mar 2024 12:45 pm IST


सही तरीके से दूर हो सकती है पानी की कमी


भारत में किसी सामान्य वर्ष में गर्मियों के आगमन के साथ ही जल संकट की भी शुरुआत होती है। लेकिन इस बार तो फरवरी में ही बेंगलुरु में पानी की किल्लत सामने आ गई। मुंबई ने भी पानी की आपूर्ति में कटौती की घोषणा की है। दिल्ली और चेन्नै भी इसके लिए तैयार हैं।

क्या हैं कारण : जल संकट के बारे में नीति आयोग की 2018 में प्रकाशित रिपोर्ट में भी बात की गई थी। इसमें बताया गया कि देश अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा है। करीब 60 करोड़ लोगों में पानी की कमी को लेकर तनाव है। रिपोर्ट में भारत को पानी की गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर रखा गया। सवाल यह है कि भारत में जल संकट का कारण पानी की कमी है या पानी का कुप्रबंधन? मेरा मानना है कि पानी की कमी के लिए दोनों ही कारण जिम्मेदार हैं।

आबादी का दबाव : भारत में दुनिया की 18% आबादी रहती है, लेकिन जल संसाधन केवल 4% ही हैं। देश में औसत वर्षा 1100 मिमी होती है, जिसमें से तीन-चौथाई तीन महीने की छोटी अवधि में होती है। देश के विभिन्न भागों में बारिश में बड़ा अंतर है। राजस्थान और गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में मात्र 150 मिमी बारिश होती है, जबकि पूर्वोत्तर में 2500 मिमी। प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 900 मीटर घन (m3)/वर्ष से भी कम है, जो घनी आबादी वाले गंगा के मैदानी इलाकों में 500 m3/वर्ष तक कम हो जाती है। यह उप-सहारा अफ्रीका के समान है, जहां लोग बूंद-बूंद पानी के लिए लड़ते हैं।

दूषित जल की समस्या : भारत की जनसंख्या के 2050 तक 160 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है। इससे प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता और कम हो जाएगी। इन सबके अलावा हमारा जल भी प्रदूषित है। नीति आयोग की रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि देश में लगभग 70% पानी दूषित है।

जलवायु परिवर्तन का असर : फिर जलवायु परिवर्तन का भी असर हो रहा है। मॉनसून पर भारत की भारी निर्भरता है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से अनिश्चित होता जा रहा है। इससे भी आने वाले वक्त में पानी का संकट और बढ़ सकता है।

क्या हो रणनीति : भारत के जल संकट को दूर करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसका उद्देश्य न केवल पानी की उपलब्धता बढ़ाना है बल्कि जल संसाधनों का कुशल उपयोग और प्रबंधन भी है।

सिंगापुर से सीखे बेंगलुरु : भूजल, झीलों और तालाबों को रीचार्ज करने के लिए बारिश के पानी का संचयन जरूरी है। इससे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की कमी की समस्या कम होगी। सिंगापुर जैसे सबसे आधुनिक शहर भी वर्षा जल संचयन की प्रैक्टिस करते हैं। सिंगापुर की लगभग आधी भूमि का उपयोग बारिश के पानी को कैप्चर करने के लिए किया जाता है। इसी तरह की पहल से बेंगलुरु जैसे शहर पानी की कमी की समस्या को काफी हद तक हल कर सकते हैं।

चेन्नै ने दिखाया रास्ता : अगर पानी को रीसाइकल और रीयूज किया जाता है तो इससे ताजा पानी की मांग कम हो सकती है। नामीबिया में विंडहोक और सिंगापुर जैसे शहरों ने जो उदाहरण पेश किया है, वह सीखने लायक है। इन दोनों शहरों में सीवेज के दूषित जल को बेहद आधुनिक तरीके से ट्रीट किया जाता है। इसके बाद इसका पेयजल के रूप में इस्तेमाल होता है। भारत में चेन्नै जैसे शहरों में औद्योगिक उपयोग के लिए पानी को ट्रीट किया जाता है। इसे पूरे देश में तुरंत अमल में लाया जाना चाहिए।

खेती में बदलाव : कृषि में भारत के 80 फीसदी पानी का उपयोग होता है। सटीक कृषि, हाइड्रोपोनिक्स और जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से पैदावार को बनाए रखते हुए इसकी खपत घटाई जा सकती है। इसके अलावा, बहु-फसल और गैर-रासायनिक प्रक्रियाओं का उपयोग जैसे शून्य-बजट प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाने से भी जल संरक्षण में मदद मिल सकती है।

पानी की कीमत : जल प्रबंधन का एक अनदेखा पहलू पानी की कीमत है। भारत में पानी लगभग मुफ्त है। इससे इसका अंधाधुंध उपयोग हो रहा है। इसी कारण पानी को जाया भी किया जाता है। इसे रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीका का मॉडल अपनाया जा सकता है। वहां एक तय राशि का पानी मुफ्त दिया जाता है, लेकिन उससे अधिक इस्तेमाल पर शुल्क वसूला जाता है। अगर पानी की कीमत वसूली जाएगी तो उससे इसके इस्तेमाल को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ेगी।

भविष्य की खातिर : भारत का जल संकट दुर्गम नहीं है, लेकिन इसे दूर करने के लिए सरकार, समुदायों और व्यक्तियों को मिलकर प्रयास करना होगा। वर्षा जल संचयन, दूषित जल का ट्रीटमेंट, कुशल कृषि पद्धति और तर्कसंगत जल मूल्य निर्धारण जैसे तरीके अपनाए जाने चाहिए। अब हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने का समय निकल चुका है। पानी संरक्षण और इसके कुशल उपयोग के लिए आज जो भी कदम उठाए जाएंगे, उससे विनाशकारी भविष्य को टालने में मदद मिलेगी। आखिर में मैं कहना चाहूंगा कि अगर हम सही तरीके से पानी का प्रबंधन करते हैं तो उससे देश का भविष्य समृद्धि होगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स