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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 12 Jan 2022 2:24 pm IST


शादी की उम्र बढ़ाने में हैं कई अड़चनें


शादी के लिए लड़कियों की उम्र सीमा 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने से जुड़ा बिल लोकसभा में पेश किए जाने के बाद संसद की स्टैंडिंग कमिटी में भेजा गया है। इससे जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है। एक बात यह भी गौर करने वाली है कि लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र पर अलग-अलग पर्सनल लॉ में अलग-अलग प्रावधान हैं। साथ ही शारीरिक संबंध और सहमति को लेकर भी कई विरोधाभास हैं। जाहिर है, इस प्रस्ताव ने एक साथ कई जटिल मसले छेड़ दिए हैं। दरअसल, जया जेटली समिति की सिफारिश के आधार पर यह बिल लाया गया है। समिति को देखना था कि शादी और मातृत्व की उम्र का मां और नवजात शिशु के स्वास्थ्य, प्रजनन दर, मातृ मृत्यु दर, शिशु लैंगिक अनुपात आदि से कैसा संबंध है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय का भी कहना है कि लड़की और लड़के की उम्र में अंतर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और उम्र में अंतर होने से समानता के मौलिक अधिकार का हनन होता है।

कानूनों में विरोधाभास
मगर मौजूदा स्थिति में विभिन्न कानूनी प्रावधानों में विरोधाभास है। स्पेशल मैरेज एक्ट के मुताबिक शादी के समय लड़की की उम्र कम से कम 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए। प्रस्तावित कानून पास होने के बाद लड़की की विवाह की न्यूनतम उम्र भी 18 से 21 साल हो जाएगी। लेकिन हिंदू मैरेज एक्ट 1955 के तहत होने वाली शादी में अगर लड़की की उम्र 18 साल से कम है तो भी वह शादी अमान्य नहीं है। इसके तहत प्रावधान है कि अगर किसी की उम्र 18 साल से कम है और उसकी शादी कराई जाती है तो शादी के बाद बालिग होने पर लड़की चाहे तो शादी को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन दे सकती है। अगर वह अमान्य घोषित करने की गुहार नहीं लगाती है तो वह शादी मान्य हो जाती है। यानी नाबालिग लड़की जिसकी उम्र 15 साल से ऊपर है उसकी हिंदू मैरेज एक्ट के तहत हुई शादी अमान्य नहीं बल्कि अमान्य करार दिए जाने योग्य होती है।इससे अलग मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत जब लड़की प्यूबर्टी पा लेती है यानी शारीरिक तौर पर शादी के योग्य हो जाती है तो उसकी शादी हो सकती है। अगर लड़की नाबालिग है तो उसके पैरंट्स की सहमति जरूरी होती है और निकाह हो जाता है।

जहां तक आईपीसी का सवाल है तो इसकी धारा-375 में रेप को परिभाषित किया गया है। उसी में मैरिटल रेप को लेकर कहा गया है कि अगर कोई लड़की 15 साल से कम उम्र की है और उसके पति ने उससे संबंध बनाए तो वह रेप होगा। लेकिन पत्नी नाबालिग है और उम्र 15 साल से ज्यादा है तो उसके साथ बनाया गया संबंध रेप के दायरे में नहीं आएगा। हालांकि अक्टूबर 2017 को दिए एक फैसले में इस अपवाद को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया और व्यवस्था दी कि अगर पत्नी 15 साल से लेकर 18 साल के बीच में है और उसकी मर्जी के खिलाफ उससे संबंध बनाए जाते हैं तो पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप का केस दर्ज करा सकती है। जजमेंट के बाद अब नाबालिग पत्नी इसके लिए शिकायत कर सकती है और रेप का केस दर्ज होगा। लेकिन यहां यह मुद्दा काबिले गौर है कि अगर लड़की 15 साल से ज्यादा और 18 साल से कम है और उसने कोई शिकायत नहीं की और न ही बालिग होने के बाद शादी को अमान्य करार देने के लिए अर्जी दी तो वह शादी भी मान्य है और पति द्वारा बनाए गए संबंध भी अपराध नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर हिंदू मैरेज एक्ट और मुस्लिम पर्नसल लॉ के तहत नाबालिग लड़कियों की शादी अभी भी अमान्य नहीं है तो फिर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल किए जाने का लाभ भारतीय समाज को कैसे मिलेगा जबकि देश भर में दूर-दराज इलाकों में अभी भी नाबालिग लड़कियों की शादी पर्सनल लॉ के तहत ही होती है।

एक अहम पहलू शारीरिक संबंध बनाने की सहमति से जुड़ा है। कानूनी प्रावधान कहता है कि अगर कोई लड़की 18 साल से कम उम्र की है और वह संबंध बनाने के लिए सहमति देती है तो भी आदमी के खिलाफ रेप का केस दर्ज होगा। लेकिन उसकी उम्र अगर 18 साल से ज्यादा है और शारीरिक संबंध के लिए उसकी सहमति है तो फिर संबंध बनाने वाले के खिलाफ रेप का केस नहीं हो सकता। अब यहां सवाल यह है कि अगर लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल की जा रही है तो क्या शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति देने की न्यूनतम उम्र 18 साल ही बनी रहेगी या उसे भी 21 साल किए जाने की जरूरत है? ऐसे ही अगर नाबालिग हिंदू लड़की शादी को अमान्य करार दिलाना चाहे तो वह 18 साल की उम्र होने पर आवेदन करेगी या 21 की उम्र में आने के बाद? अगर 18 साल के बाद भी वह शादी को अमान्य करार नहीं दिलाती है तो क्या 21 साल से कम उम्र की उसकी शादी मान्य बनी रहेगी?

कानून से बाहर बनते रिश्ते
जैसा कि ऊपर कहा गया है, मौजूदा कानून के तहत 18 साल या उससे ज्यादा उम्र की लड़की शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति देने की अधिकारी है। मतलब यह हुआ कि लड़की कानूनी तौर पर 21 साल से पहले शादी तो नहीं कर सकती लेकिन वह संबंध बनाने के लिए सहमति दे सकती है। ऐसे में बिना शादी किए लड़की 18 साल से ऊपर होने के बाद लिव-इन में रह सकती है, संबंध बना सकती है और बच्चे भी पैदा कर सकती है। तो क्या नया कानून कानून से बाहर बनने वाले इन रिश्तों के जरिए समाज में जटिलता को बढ़ाने वाला है? जाहिर है, लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने से पहले इन कानूनी विरोधाभासों को दूर करने की जरूरत है।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स