क्या विराट कोहली क्रिकेट के इतिहास में सचिन तेंडुलकर से भी बेहतर बल्लेबाज हैं? इस बात पर लंबी बहस हो सकती है, भले ही उसका कोई नतीजा ना निकले। एक और सवाल यह हो सकता है कि क्या विराट भारतीय क्रिकेट के महान कप्तानों में से एक हैं? वनडे क्रिकेट में तो उन्हें कोई भी महान नहीं मानेगा, लेकिन क्या टेस्ट क्रिकेट में कोहली को भारत का महानतम कप्तान माना जा सकता है? आखिर यह एक तथ्य है कि उनसे ज्यादा टेस्ट मैच किसी भारतीय कप्तान ने नहीं जीते हैं।
बोल्ड ‘ड्राइव’
शानदार रेकॉर्ड के बावजूद कई आलोचक इस दलील को नहीं मानेंगे। वे कह सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में एक ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज जीतने के अलावा कोहली के नाम विदेशी दौरे पर कुछ खास उपलब्धियां नहीं हैं। हालांकि, आने वाली पीढ़ियों से जब यह पूछा जाएगा कि किस भारतीय क्रिकेटर ने मैदान से बाहर स्टेट्समैन की भूमिका निभाई, तो उसमें कोहली का नाम जरूर आएगा। साथी खिलाड़ी मोहम्मद शमी के बचाव में कोहली थोड़ी देर से आए। वह चाहते तो पाकिस्तान के हाथों हार पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने के बाद तुरंत करोड़ों फॉलोअर्स के सामने अपनी बात रख सकते थे, लेकिन कोहली ने वक्त लिया। शायद इसलिए कि वह जो कहना चाहते थे, किसी भारतीय क्रिकेटर या कप्तान के लिए आसान नहीं था
पाकिस्तान से हारने के बाद सोशल मीडिया पर धर्म के आधार पर शमी को निशाना बनाया गया। इस पर कोहली ने कहा कि किसी भी शख्स पर उसके धर्म के बहाने हमला करना एक इंसान के तौर पर सबसे घटिया बात है। इसमें कोई शक नहीं कि कोहली के इस बयान का असर भारतीय क्रिकेट जगत तक सीमित नहीं रहेगा। इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ेगी। टीम इंडिया के इकलौते मुस्लिम खिलाड़ी शमी को अपने कप्तान से शायद सार्वजनिक तौर पर ऐसे समर्थन की जरूरत ना हो, लेकिन इससे उन भारतवासियों का भी हौसला बढ़ा होगा, जो हमेशा से ‘सबका साथ सबका विकास’ के हिमायती रहे हैं।
यह भी सच है कि खिताब जीतने के मामले में कोहली कभी महेंद्र सिंह धोनी की बराबरी नहीं कर पाएंगे। जानकार उन्हें सौरभ गागुंली की तरह क्रिकेट की शानदार समझ रखने वाला कप्तान भी नहीं मानेंगे, ना ही राहुल द्रविड़ जैसा पढ़ा-लिखा और दुनिया की समझ रखने वाला कप्तान। इसके बावजूद कोहली ने दुबई में अपने एक बयान से साबित कर दिया कि जिंदगी में कुछ मौके ऐसे आते हैं, जब किसी शख्सियत की महानता का अंदाजा सिर्फ इस बात से नहीं लगाया जाता कि उसने अपनी फील्ड में क्या उपलब्धियां हासिल की हैं।
स्पोर्ट्स लिटरेचर के इतिहास में त्रिनिदाद के सीएलआर जेम्स की किताब ‘बियॉन्ड अ बाउंड्री’ अमर रचना मानी जाती है। उन्होंने इस किताब में लिखा है कि क्रिकेट के बारे में वे क्या जानें, जिन्हें सिर्फ क्रिकेट ही जानता हो। और जब भी दुनिया में किसी समाज को क्रिकेट के आईने से देखने की कोशिश की जाती है, जेम्स की इस बात का जिक्र होता है। शमी के लिए कोहली ने जो बयान दिया, वह भी जेम्स की इस बात से कम वजन नहीं रखती। जेम्स की ही तरह कोहली के इस बयान से पता चलता है कि समाज में नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता और पीड़ित वर्ग का शोषण सबसे बड़ी समस्या है।
इस तरह से कोहली ने एक नई शुरुआत कर दी है। हो सकता है, दूसरी सिलेब्रिटीज भी अब सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रखने से सिर्फ इसलिए नहीं हिचकेंगी कि इससे उन्हें कुछ आर्थिक नुकसान हो जाएगा। क्रिकेट के मैदान पर कोहली की आक्रामकता देश में बहुतों को शायद पसंद ना हो। लेकिन शमी को लेकर कोहली ने जो रुख अपनाया, उससे उन्होंने आलोचकों को भी अपना मुरीद बना लिया है।
ऐसा नहीं है कि कोहली को इसका अंदाजा नहीं होगा कि देश में जिस तरह का माहौल है, उसमें ऐसी बात कहने पर ट्रोल्स उनके पीछे पड़ जाएंगे। वह पहले नोटबंदी का समर्थन कर चुके हैं, तब दूसरे वर्ग की ओर से उनकी आलोचना हुई थी। उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। इससे पता चलता है कि कोहली जो भी करते हैं, दिल से करते हैं। कोहली ने शायद इस बयान से यह संदेश दिया कि आज जिस तरह से हमारा समाज दो हिस्सों में बंटा हुआ है, उसकी आंच भारतीय क्रिकेट तक भी पहुंचने लगी है। सचिन तेंडुलकर और अनिल कुंबले जैसे दिग्गज भी शमी के समर्थन में उतरे। ऐसे ज्यादातर खिलाड़ियों ने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ शमी का खेल उस दिन बुरा था, लेकिन इसके लिए उन्हें निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। ये क्रिकेटर शायद समझ नहीं पाए कि वास्तव में हमला शमी की क्रिकेट पर नहीं था। कट्टरपंथियों ने शमी में एक भारतीय क्रिकेटर नहीं बल्कि एक मुसलमान देखा था। कुछ महीने पहले भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना कटारिया में कथित ऊंची जाति वाले कुछ लोगों ने उनकी जाति देखी थी। उन्हें यह नहीं दिखा कि वंदना ने किस तरह से दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाया है।
रणातुंगा की नजीर
अर्जुन रणतुंगा का श्रीलंका में आज भी सिर्फ इसलिए सम्मान नहीं होता कि उन्होंने 1996 में विश्व कप में पहली जीत दिलाई थी। उन्हें युवा स्पिनर मुथैया मुरलीधरन के बचाव के लिए भी याद किया जाता है। रणतुंगा ने नस्लवाद से प्रभावित ऑस्ट्रेलियाई अंपायरों और दर्शकों के सामने मुरलीधरन का जिस तरह से बचाव किया, वैसी मिसाल खेल की दुनिया में कम ही मिलती है। रणतुंगा ने नाजुक लम्हे में मुरलीधरन को संभाला। इसी का परिणाम था कि एक दशक के बाद वह अंतराष्ट्रीय क्रिकेट के सबसे कामयाब गेंदबाज बन पाए। शमी शायद कोहली के इस समर्थन के बाद भी मुरलीधरन की तरह कामयाब ना हो पाएं, लेकिन भारतीय कप्तान ने जिस तरह से एक बोल्ड स्टेप उठाया, उससे वह रणतुंगा सहित क्रिकेट इतिहास के सभी कप्तानों से आगे निकल गए। उनके इस बयान ने करोड़ों भारतीयों को भी सोचने पर मजबूर किया।
सौजन्य से – नवभारत टाइम्स