बच्चों के एग्जाम हो चुके, रिजल्ट आने वाले हैं। अपने यहां एग्जाम और परिणाम वाले दिन पैरंट्स के लिए साल के सबसे स्ट्रेसफुल दिन होते हैं। प्राइमरी के बच्चे तो शायद परिणाम को लेकर इतनी टेंशन नहीं लेते, लेकिन उनके पैरंट्स अक्सर एंग्जाइटी में चले जाते हैं। बच्चे के फ्यूचर को लेकर आने वाले चिंता भरे ख़याल पल भर में इतने भयानक हो जाते हैं कि मां या बाप या फिर दोनों को लगने लगता है कि उनका बच्चा पता नहीं क्या-क्या कष्ट झेलकर ज़िंदगी जिएगा। आशंकाएं जीवन का हिस्सा हैं। दिमाग की प्रवृत्ति ही है लगातार ख़याल बुनना। अच्छे, बुरे, सुहाने, भयानक, कैसे भी। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। फ़र्क पड़ता है उसे, जिसका वह दिमाग है। ज्ञानी लोग कहते हैं कि यह कैसे ख़याल बुनेगा, यह आप पर निर्भर करता है। इसलिए अच्छे ख़याल बुनने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। सामान्य लोग कहते हैं कि यह किसी के बस की बात नहीं। कौन सा ख़याल कब आ जाए, कुछ पता नहीं। इसलिए इस पर बहस करने के बजाय इस पर बात करते हैं कि बच्चों के भविष्य से जुड़ी आशंकाओं का क्या किया जाए।
कुछ महान लोगों के नाम चुन लेते हैं। जब वे बच्चे थे तब कोई कह नहीं सकता था कि वे जो बने, वह बन सकते थे। दुनिया के सबसे जीनियस लोगों में से एक अल्बर्ट आइंस्टीन चार साल के होकर भी बोलना नहीं सीखे थे। स्कूल में इतने सुस्त थे कि टीचर छोड़िए, मां-बाप तक उन्हें निकम्मा मानने लगे थे। स्कूल से निकाल दिए गए थे। वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन ने दुनिया को बल्ब की रोशनी दी, लेकिन उनका स्कूली जीवन घुप्प अंधेरे से भरा था। टीचर ने कह दिया कि वह इतना कमजोर है कि स्कूल से निकाला जा रहा है। एडिसन की मां ने ही उन्हें पढ़ाई करवाई। भारत से पहला नोबल पुरस्कार जीतने वाले महान क़वि रवींद्रनाथ टैगोर स्कूल में फेल हो गए थे। टीचर कहते थे कि उन्हें पढ़ना-लिखना समझ नहीं आता।
इन नामों की लिस्ट इतनी लंबी है कि आप सोच भी नहीं सकते। सोचना भी किस लिए है। हर बच्चा दूसरे से अलग होता है। कामयाबी और पढ़ाई दो अलग-अलग चीजें हैं। ऐसे बेहिसाब लोगों को जानता हूं जो स्कूल में किताबी कीड़े थे, क्लास में फर्स्ट आते थे, लेकिन सामान्य जीवन ही जी रहे हैं। और जो एकदम फिसड्डी थे, रोज मास्टर जी से मार खाते थे, वे बेहतर जीवन जी रहे हैं। बच्चा तो बच्चा होता है। उसे खेलना पसंद है और पढ़ाई में मन नहीं लगता, तो यह सामान्य बात है। इसका उल्टा है तो टेंशन होनी चाहिए। समझ उम्र और परिस्थितियों के हिसाब से बढ़ती है। वक्त से बेहतरीन टीचर कोई नहीं होता। इसलिए जोर सीखने और सिखाने की प्रक्रिया पर होना चाहिए। जिसने ये सीख लिया कि सीखते कैसे हैं, वह आगे चलकर कुछ भी सीख लेगा। कुछ भी हासिल कर लेगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स