सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर बढ़ती अराजकता, अभद्रता व अश्लीलता को लेकर लगातार यह मांग की जा रही थी कि भारत सरकार इनके नियमन व निगरानी को लेकर हस्तक्षेप करे। केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी करते हुए अब एक कानून लाने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडे़कर ने कल संवाददाता सम्मेलन में साफ किया कि सरकार अगले तीन महीनों में यह कानून लागू करने जा रही है। दिशा-निर्देशों के मुताबिक, अब सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर प्रसारित-प्रकाशित किसी भी आपत्तिजनक सामग्री को शिकायत मिलने के 24 घंटे के अंदर हटाना होगा। गौरतलब है, पिछले महीने ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर प्रसारित शृंखला तांडव को लेकर विवाद खड़ा हुआ था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। तब आला अदालत ने इसके निर्माताओं को गिरफ्तारी से बचने के मामले में राहत देने से इनकार करते हुए टिप्पणी की थी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। इसमें कोई दोराय नहीं कि सोशल मीडिया ने लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी का वास्तविक एहसास कराया और अब तो इसके विभिन्न मंच जनमत-निर्माण में प्रभावशाली भूमिका निभाने लगे हैं। भारत में इनकी पहुंच कितनी बड़ी है, इसकी तस्दीक केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा पेश किए गए आंकडे़ ही करते हैं। देश में इस समय वाट्सएप का इस्तेमाल करने वालों की संख्या जहां करीब 53 करोड़ तक पहुंच गई है, तो वहीं फेसबुक के उपयोगकर्ताओं की तादाद 40 करोड़ से अधिक हो चुकी है। इसी तरह, ट्विटर पर भी एक करोड़ से अधिक भारतीय सक्रिय हैं। इस विशाल संख्या को देखते हुए ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने यहां आईटी सेल का गठन किया और उनकी बड़ी-बड़ी टीमें इन दिनों काफी सक्रिय हैं। कई बार तो भ्रामक खबरें फैलाने और अशालीन सामग्रियां तैयार करने के आरोप इन टीमों पर भी लगे हैं। विडंबना यह है कि सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसे विवादों से व्यावसायिक लाभ होता है। इसलिए वे इसकी अनदेखी करती रहती हैं। वे लाख दावे करें, मगर उनकी कार्यवाइयां पक्षपातपूर्ण रही हैं। अमेरिका और यूरोप में तो वे काफी चौकसी बरतती हैं, मगर भारत में शिकायत के बावजूद कदम उठाने से कतराती हैं। ऐसे में, हरेक महीने शिकायतों की संख्या और उन पर कार्रवाई के ब्योरे उजागर करने से पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। बहरहाल, सरकार की मंशा एक साफ-सुथरा, निष्पक्ष डिजिटल मैदान तैयार करने की भले हो, उसे प्रस्तावित कानून में इस बात का पूरा ख्याल रखना होगा कि इसके किसी प्रावधान से अभिव्यक्ति की आजादी को कोई आंच न पहुंचे। चूंकि यह लोकतंत्र का बुनियादी गुण है, इसलिए इसमें कोई कमी गंभीर नुकसान की वजह बन सकती है। एक आदर्श लोकतंत्र को कायदे-कानूनों की कम से कम जरूरत होनी चाहिए, और उसे स्थापित स्वस्थ मूल्यों व परंपराओं से ही अधिक संचालित होना चाहिए, पर यदि कानून बनाने की बाध्यता आ ही जाए, तो उसके दीर्घकालिक परिणामों पर गंभीर मंथन जरूरी है। इन डिजिटल प्लेटफॉर्मों के लिए स्व-नियमन की व्यवस्था सही है। इसके पीछे यही संदेश है कि भारत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूक देश है और सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा व नागरिक-हितों की रक्षा उसकी चिंता के मूल में है।
सौजन्य - हिंदुस्तान