जब से होश संभाला है, लोगों को किसी न किसी बात पर परेशान होते देखा है। लोगों को क्या, खुद भी किसी न किसी बात पर परेशान होता रहा हूं। कोई परिस्थिति बनती है, उसके नफे-नुकसान का कैलकुलेशन जेहन में शुरू हो जाता है। जिसकी जैसी उम्र होती है, मच्योरिटी लेवल या ज्ञान होता है, वह उसी हिसाब से कैलकुलेशन करता है। इसी हिसाब से तय होता है कि वह कितना परेशान होगा और कितना सहज रहेगा। हमारा व्यक्तित्व कैसा है, विचार, मान्यताएं और आर्थिक-सामाजिक स्थिति कैसी है, इन सबसे भी हमारी परेशानी का लेवल तय होता है। सब अलग-अलग होते हैं। लेकिन एक बात है कि हमारे विचारों या उस परिस्थिति को लेकर चल रही गुणा-भाग से ही तय होता है कि हम कितने परेशान होंगे। क्या हम इसे नियंत्रित कर सकते हैं?
हर हाल में मस्त रहने की जब-जब बात छिड़ती है, मुझे एक चाचा याद आते हैं, सतीश। बचपन में पड़ोस में रहते थे, अब भी हैं। कपड़े प्रेस करना उनकी आमदनी का प्रमुख जरिया है। बाकी जहां से कुछ कमाई हो, वह कर लेते हैं। कोई भी काम हो, उनको सब आता है। जितने में उनकी और परिवार की मूल जरूरत पूरी हो जाए, उतना ही कमाते हैं। बरसों से उनको एक जैसा पाया है। पसंद का खाना, पीना, मस्त नींद लेना। न ढंग से घर खड़ा किया, न कोई बैंक बैलेंस बनाया। जो कमाया, खा लिया, बस। कोई उनके बारे में क्या कहता है, क्या सोचता है, उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता। दो दिन पहले मिला। इस बारे में बात हुई तो बोले, साथ कुछ जाएगा क्या? मस्ती से जियो यार।
एक दिन वृंदावन वाले श्री प्रेमानंद महाराज का एक विडियो सुन रहा था, कह रहे थे- हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है परेशान रहना। ये हमारा स्वभाव हो गया है। संसार की बात हो या परमार्थ की। थोड़ा धैर्यवान और गंभीर बनना चाहिए। बड़े से बड़ा संकट भी हो तो सामना करना चाहिए। ऐसा थोड़े ही है कि वो हमें नष्ट कर देगा। ठीक है, थोड़ी हानि हो जाएगी तो सह लो। दंड सह लो, फिर उठो और प्रण लो कि जो खोया है, उससे अधिक पा लेना है। पहले भी मेहनत की थी तो कुछ पाया था, अब और मेहनत कर लेंगे, उससे भी अधिक पा लेंगे। हालात से डरकर भागना थोड़े ही है। भारी कष्ट में भी मुस्कुराना सीखना है। यही जीवन है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स