नॉन-स्टिक बर्तन, कुकवेयर, वाटरप्रूफ कपड़े, फूड पैकेजिंग और फायर फाइटिंग फोम बनाने में जिन केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, वे per- and polyfluoroalkyl substances (PFAS) समूह के होते हैं। इस तरह के केमिकल्स पानी, धूल और तेल के प्रतिरोधक होते हैं, इसलिए इन उत्पादों में इनका इस्तेमाल होता है। ये आसानी से नष्ट नहीं होते और पर्यावरण में लंबे समय तक टिके रहते हैं, इसलिए इन्हें ‘forever chemicals’ भी कहते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, क्योंकि पानी, मिट्टी और भोजन के माध्यम से शरीर में जमा होते जाते हैं और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करते हैं।
अध्ययन बताते हैं कि इनसे कैंसर, थायराइड, हाई कोलेस्ट्रॉल और इम्यून सिस्टम से जुड़ी समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। लिहाजा PFAS समूह के केमिकल्स ने दुनिया की चिंता बढ़ा दी है और इनके प्रभाव को खत्म करने के लिए विभिन्न स्तरों पर काम चल रहा है। इसी क्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का-लिंकन में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने गंदे पानी में मौजूद ऐसे बैक्टीरिया की खोज कर ली है, जो खास तरह के ‘फॉरेवर केमिकल्स’ को नष्ट कर देते हैं। हालांकि PFAS के उपचार के लिए पहले से ही कुछ प्रभावी तरीके मौजूद हैं, जैसे कि फिल्ट्रेशन और हीट ट्रीटमेंट। लेकिन, बैक्टीरिया से इसके प्रभाव को कम करने का तरीका बेहतर हो सकता है, क्योंकि इसमें लागत कम आएगी। इसे ग्राउंडवाटर में भी आसानी से इंजेक्ट किया जा सकता है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स