नीरज सिंह के ब्लॉग लोक दस्तक से
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में वर्तमान समय में राजनीति का बड़ा ही अजीब स्वरूप देखने को मिला जो शायद अब तक पहले नहीं देखने को पहले नहीं देखने को मिला था। मैं ही क्या भारत का हर जागरूक नागरिक राजनीति पर टिप्पणी करने में निशब्द हो चला हैं,हतप्रभ है। मन में अनेक सवाल उठ रहे हैं! क्या आज के राजनीतिज्ञ राजनीति की परिभाषा ही भूल गए हैं या फिर राजनीति की दिशा को दूसरी तरफ मोड़ने का कुत्सित प्रयास तो नही हो रहा है! या फिर जानबूझकर कर ऐसा किया जा रहा है। अगर ऐसा है तो लोकतांत्रिक देश व उसकी व्यवस्था के लिए खतरा है। इससे हमें सचेत रहने की आवश्यकता है। राजनीति दो शब्दों से मिलकर बना राज +नीति। राज का अर्थ है कि शासन करना तथा नीति का अर्थ है किसी विशेष उद्देश्य से किसी कार्य को करना यानी कि नीति के अनुसार कार्य करना वर्तमान समय में राजनेताओं ने राजनीति का मायने ही बदल कर रख दिया है। राज का मतलब शासन करना तो सही लेकिन उनकी नीति समाज को सामाजिक व आर्थिक स्तर पर ऊंचा उठाने के बजाय अब स्वयं को ऊपर उठाने में लगे हुए हैं अगर इसे डर्टी पॉलिटिक्स कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । इन्हें तो सिर्फ अपनी राजनीति को चमकाना है। येन केन प्रकाणेन व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं इससे समाज का क्या नुकसान होगा । इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है । आज राजनीति जनसेवा से हटकर स्वयं सेवा हो गई है । हाथरस कांड बलरामपुर कांड राजस्थान के पुजारी हत्याकांड इसके जीते जागते उदाहरण हैं। आज की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में किसी यूजर ने ट्विटर पर पर दो पंक्तियां डाली हैं।
जहां लाश जलाने पर हाहाकार होता है।
जिन्दा जलाने पर सन्नाटा छाया रहता है।
उक्त पंक्तियों में वर्तमान राजनीति कटाक्ष करने का प्रयास अवश्य किया है। देश के बड़े जिम्मेदार राजनीतिक दलों के रहनुमा उक्त घृणित व दुखद घटनाओं पर यह तेरा राज्य है यह मेरा राज्य की नीति अपना रहे हैं आखिर भारतीय राजनीति किस स्तर पर पहुंच रही है , बहुत ही दुखद स्थिति है । आज सत्ता दल अपनी मर्यादाओं को भूल चुके हैं तो वहीं विपक्षी किसी मर्यादा में बंध कर रहना उन्हें गवारा नहीं है। हाथरस घटना पर राहुल गांधी,प्रियंका गांधी सहित देश के बड़े-बड़े नेता वहां पहुंच गए तो वहीं पुजारी की हत्या के बाद उसके परिवार को संवेदना देने कोई बड़ा विपक्षी नेता नहीं गया और चुप्पी साध ली । हाथरस पर जमकर बवाल हुआ क्योंकि वह मामला किसी एक विशेष जाति से जुड़ा था । क्या यही कारण था जबकि पुजारी एक अग्रणी समाज का व्यक्ति था। हाथरस कांड में योगी सरकार को कोई क्लीन चिट नहीं दे रहे हैं क्योंकि शुरुआती दौर में जिस प्रकार हाथरस मामले को सरकार व प्रशासन ने हैंडल किया, रात्रि में पीड़िता के शव को परिवार की बिना अनुमति ही जला देना,जिस पर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ने भी सरकार व प्रशासन से नाराजगी जाहिर कर चुका है। मीडिया को पीड़ित परिवार से मिलने पर पाबंदी लगाना कहाँ तक जायज ठहराया जा सकता है।वहीं राजस्थान में पुजारी की जला कर हत्या होती है । कांग्रेस सरकार का कोई मंत्री,सांसद व विधायक परिवार से मिलने तक नही पहुंचा।तीन दिन बाद सरकार को पीड़ित परिवार की सुधि आई। इन सब में सबसे दुःखद पहलू ये है किपीड़ितों के न्याय व गुनहगारों सजा दिलाने के बजाय लोकतंत्र के रखवाले इन घटनाओं में भी जातीय समीकरण देख रहे हैं। इससे घटिया राजनीति और क्या हो सकती है। अब तो जैसे साफ सुथरी राजनीति के दिन लद गये हों।अब तो लगता है राजनीति सेवा नहीं व्यवसाय हो बन चुका है।आइये हम सब को मिलकर Clean democracy के निर्माण में अपना योगदान करें और स्वच्छ साफ ,ईमानदार का ही चुनाव करें जिससे लोकतंत्र व लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत बनाएं।