दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बैंक के खिलाफ शिकायत में रिजर्व बैंक के लोकपाल के 'मनमाने रवैये' से हैरान होकर कहा है कि लोकपाल योजना को महज खानापूर्ति के तौर पर नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह विनियमित इकाइयों जैसे कि बैंक या एनबीएफसी के बीच की खाई को पाटती है। उसके बावजूद उपभोक्ता न्याय के लिए भटक रहे हैं।
अदालत ने कहा कि यह योजना विनियमित संस्थाओं के खिलाफ उपभोक्ताओं की शिकायतों के लागत प्रभावी और त्वरित समाधान को प्राप्त करने का प्रयास करती है और लोकपाल पूरी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए एक तर्कसंगत आदेश पारित करने के लिए बाध्य है।
अदालत उस याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो लोकपाल द्वारा विस्तृत आदेश पारित किए बिना एक निजी बैंक के खिलाफ उसकी शिकायत को खारिज करने के तरीके से व्यथित था।
अदालत ने कहा कि रिजर्व बैंक- एकीकृत लोकपाल योजना 2021 के तहत लोकपाल द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन करते हुए सेवाओं में कमियों से संबंधित विनियमित संस्थाओं के ग्राहकों की शिकायत पर विचार करना आवश्यक है। इस मामले में, शिकायत को खारिज करते समय याचिकाकर्ता/शिकायतकर्ता की ओर से की गई किसी भी दलील पर विचार नहीं किया।