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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 12 Jan 2023 3:48 pm IST


साबुन बनाकर खड़ी कर दी करोड़ों की कम्पनी, जानें कैसे शुरू हुआ था Margo का सफर


ये बात वैसे तो उस दौर की है जब देश पर अंग्रेजों का राज था और कलकत्ता ही बड़ा बिजनेस हब हुआ करता था। उस समय के सारे बिजनेस का कलकत्ता (अब कोलकाता) से कोई न कोई कनेक्शन जरूर रहता था। वहीं स्‍वदेशी आंदोलन के दौरान भी कई कंपनियों का शुभारंभ हुआ। उसमें से कई कंपनियां आज भी अपना मार्केट में मजबूती से खड़ी हैं। आज हम आपको Margo साबुन के बारे में बताएंगे। एक वक्त था जब इस साबुन को काफी तवज्‍जो  मिलती थी और ये लगभग हर घर में इस्तेमाल होता था। इसके औषधीय गुणों की वजह से इसकी खूब बिक्री हुआ करती थी। आज भी ये साबुन बाजार में बना हुआ है। 
के. सी. दास केमिस्ट्री के ज्ञाता थे, उन्‍होंने कमेन्स्ट्री से ही पढ़ाई भी की थी। ऐसे में उन्हें नीम के फायदे के बारे में काफी अच्छे से पता था। वहीं देश की जनता भी नीम के फायदे के बारे में जानती थी। बस फिर क्‍या था, उन्‍होंने इसी पहचान का सही फायदा उठाया और नीम को साबुन की शक्‍ल दे डाली और उसे नाम दिया मार्गो। इसके साथ ही उन्होंने Neem Toothpaste भी बनाया। वहीं लैंवेंडर ड्यू नाम का एक प्रोडक्‍ट भी उस दौरान बाजार में तेजी से बिक  रहा था। इसके बाद कंपनी ने एरामस्क सोप, महाभृंगराज ऑयल और चेक डिटर्जेंट जैसे दूसरे प्रोडक्ट का भी निर्माण किया। इस साबुन कंपनी के मालिक के. सी. दास ने मार्गो साबुन का रेट इस तरह तय किया कि मार्केट में  हर वर्ग का व्यक्ति से खरीद सके।
यही वजह थी कि मार्गो साबुन को देश भर में फेमस होने में ज्यादा समय नहीं लगा। उस जमाने में लोगों ने इस साबुन को हाथों हाथ खरीदा। आलम ये रहा कि कुछ ही सालों में कंपनी को तमिलनाडु में भी मैन्यूफैक्चरिंग प्‍लांट खोलना पड़ा। 1990 के दशक में मार्गो साबुन का खूब जलवा था। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं क‍ि 1988 में इंडियन मार्केट में इसकी हिस्सेदारी लगभग 8 फीसदी से ज्यादा थी। हालांकि इस साबुन कंपनी को बाद में 75 करोड़ रुपये में हेंकेल कंपनी ने खरीद लिया। साल 2011 में ज्योति लैबोरेटीज ने इस ब्रांड से जुड़े सभी अधिकार खरीद लिए। अब ये कंपनी मार्गो ब्रांड नाम से साबुन के अलावा फेसवॉश, हैंडवॉश और सैनेटाइजर भी बेचती है। वहीं Neem Toothpaste को Neem Active ब्रांड के नाम बाजार में बेचा जाता है।