हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में भाई दूज पर्व का विशेष महत्व है। इस वर्ष यह पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा। बता दें कि भाई दूज पर्व को रक्षाबंधन की भांति भाई-बहन के आपसी प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। भाई दूज को देश के अलग-अगल हिस्सों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। भाई दूज को भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। भाई दूज पर बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाकर आरती उतारती हैं और उनकी लंबी आयु, सुख-समृद्धि और जीवन में वैभव की कामना करती हैं। इसके बाद भाई अपने बहनों को उपहार देते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाई दूज पर यमराज अपनी बहन यमुना के आमंत्रण पर उनके घर भोजन ग्रहण करने आते हैं। ऐसे में इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और यमुना की पूजा करने का विधान है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर टीका लगाती हैं, उनकी आरती उतारती है और लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से उनके जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली आती है। पौराणिक मान्यता यह भी है कि भाई दूज के दिन बहनों के घर भोजन करने से भाइयों के सभी काम सफल होते हैं जीवन में धन-ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। आइए जानते हैं भाई दूज की तिथि शुभ मुहूर्त मंत्र, विधि और पौराणिक कथा।
भाई दूज शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 अक्टूबर को दोपहर 2:42 से शुरू हो रही है और इसका समापन 27 अक्टूबर दोपहर 12:45 पर होगा। इसके साथ यह भी जान लें कि भाई दूज का तिलक समय 12:14 से 12:47 तक है। इस अवधि में बहन अपने भाई को टीका लगाएं और इस मंत्र का जाप करें-
भ्रातस्तवानुजाताहं भुंक्ष्व भक्तमिमं शुभं।
प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषत:।।
भाई दूज तिलक विधि
भाई दूज के दिन भाई और बहन दोनों ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और साफ कपड़े पहनकर सबसे पहले भगवान का पूजन करें। इसके बाद मुहूर्त काल में भाई के तिलक के लिए बहन सुंदर थाल सजाएं। इस बात का ध्यान रखें कि थाली में कुमकुम, सिंदूर, चंदन, फूल, फल, मिठाई, अक्षत व सुपारी जरूर हो। मुहूर्त काल में एक चौकी सजाएं और उस पर बैठाकर भाई को तिलक लगाएं। तिलक के बाद फूल, पान, सुपारी, बताशे और काले चने भाई को दें। फिर उनकी आरती उतारें, आरती के बाद उन्हें मिठाई खिलाएं और अपने हाथों से भोजन परोसें।
भाई दूज पौराणिक कथा
भैया दूज के संबंध में पौराणिक कथा इस प्रकार से है। सूर्य की पत्नी संज्ञा से 2 संतानें थीं, पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उन्हें ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गईं। छाया को यम और यमुना से अत्यधिक लगाव तो नहीं था, किंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं। यमुना अपने भाई यमराज के यहां प्राय: जाती और उनके सुख-दुःख की बातें पूछा करती। तथा यमुना, यमराज को अपने घर पर आने के लिए भी आमंत्रित करतीं, किंतु व्यस्तता तथा अत्यधिक दायित्व के कारण वे उसके घर न जा पाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने भाई यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उन्हें अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। ऐसे में यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।
बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। जब वे वहां से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया। यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा: भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बचे रहेंगे। यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। भैया दूज त्यौहार का मुख्य उद्देश्य, भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। भैया दूज के दिन ही पांच दिनों तक चलने वाले दीपावली उत्सव का समापन भी हो जाता है।