कालकाजी : दुनिया के प्राचीन मंदिरों में से एक कालकाजी में नवरात्र के दौरान एक से डेढ़ लाख श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रच्चलित हैं। मंदिर को 3000 साल पुराना माना जाता है। इसमें प्राचीनकाल की कई वस्तुएं शामिल हैं।
क्या है मान्यताएं : मान्यता है कि इसी जगह मां ने महाकाली के रूप में प्रकट होकर राक्षसों का सहंगार किया था। तभी से इसे मनोकामना सिद्धपीठ के रूम में भी जाना जाता है। सतयुग काल में भगवान कृष्ण ने युद्ध से पहले पांडवों के साथ यही पर पूजा की थी। युद्ध जीतने के बाद ललिता यज्ञ भी यहीं हुआ था।
मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। उनके कहने पर मुगल साम्राज्य के अकबर टू ने इसका जीर्णोधार करवाया। मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग भी है। इसे यहां से शिफ्ट करने की कोशिश की गई और करीब 96 फिट तक खोदा गया लेकिन शिवलिंग को शिफ्ट करने में कामयाबी नहीं मिल सकी। इस मंदिर में माई के काली और कौशिकी रूप की पूजा एक साथ होती है। हालांकि नवरात्र के दौरान काली मां को शराब आदि का प्रसाद नहीं चढ़ता।
84 घंटो की आवाज अलग-अलग
अकबर-टु ने इस मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे। इनमें से कुछ घंटे अब मौजूद नहीं है। इन घंटों की विशेषता यह है कि हर घंटे की आवाज अलग है। इसके अलावा 300 साल पुराना एतिहासिक हवन कुंड भी मंदिर में है और वहां आज भी हवन किए जाते हैं। हवन कुंड के रूप में कोई बदलाव नहीं किया गया है। हवन कुंड के आसपास के क्षेत्र का विस्तार जरूर किया गया है।