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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 29 Oct 2022 8:30 am IST


पूजा-पाठ में क्यों उपयोग किया जाता है शंख, जानें इसके चमत्कारी गुण


सनातन मान्यताओं के अनुसार शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है। आरती, धार्मिक उत्सव, हवन-क्रिया, राज्याभिषेक, गृह-प्रवेश, वास्तु-शांति आदि शुभ अवसरों पर शंखध्वनि से लाभ मिलता है। पितृ-तर्पण में शंख की अहम भूमिका होती है। शंख निधि (धन) का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिरों एवं मांगलिक कार्यों में शंख-ध्वनि करने का प्रचलन है।

ऐसे हुई शंख की उत्पत्ति
मान्यता है कि शंख का प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर अर्थात भाई है। अत: यह भी मान्यता है कि जहां शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वयं भगवान विष्णु इसे अपने हाथों में धारण करते हैं। धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में शंख की स्थापना की जाती है।

तीन प्रकार के होते हैं शंख 
1- जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है।
2- जिस शंख का मुंह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है। 
3- जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है।
मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इसके अतिरिक्त लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि कई प्रकार के होते हैं।

शंख का यह है महत्व
-मान्यता है कि शंख में कपिला (लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं। 
-परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन (शंख से हाथ में ले कर पीने से ) से असाध्य रोग एवं दुःख-दुर्भाग्य दूर होते हैं।
-विष्णु शंख को दुकान, ऑफिस, फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहां के वास्तु-दोष दूर होते हैं वहीं व्यवसाय आदि में लाभ होता है।
-शंख की स्थापना से घर में लक्ष्मी का वास होता है। स्वयं माता लक्ष्मी कहती हैं कि शंख उनका सहोदर भ्राता है। शंख, जहां पर होगा, वहां वे भी होंगी। देव प्रतिमा के चरणों में शंख रखा जाता है।
-पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है। इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए।
-गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती नारी को सेवन कराने से संतान गूंगेपन, बहरेपन एवं पीलिया आदि रोगों से मुक्त होती है।