DevBhoomi Insider Desk • Sun, 18 Sep 2022 7:00 am IST
पितृपक्ष में श्रीमद् भागवत कथा पढ़ने-सुनने की है परंपरा, पितरों की आत्मा को मिलती है शांति
25 सितंबर तक पितृ पक्ष रहेगा। इन दिनों में श्रीमद् भागवत कथा पढ़ने और सुनने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि इसके पढ़ने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और सुनने वाले लोगों का मन शांत होता है, निगेटिविटी दूर होती है। धर्माचार्यों का कहना है कि ये कथा श्रीकृष्ण की महिमा बताती है। भगवान का ध्यान करने से भक्तों के बुरे विचार खत्म होते हैं और मन गलत कामों से दूर होता है।
किसने लिखी श्रीमद् भागवत कथा
महर्षि वेद व्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी। इस सबसे बड़े ग्रंथ की रचना करने के बाद भी वेद व्यास जी के मन को शांति नहीं मिल रही थी। वे उदास रहने लगे थे। उस समय नारद मुनि वेद व्यास जी के पास पहुंचे। नारद मुनि ने व्यास जी को निराश देखा तो उनसे इसकी वजह से पूछी। व्यास जी ने जवाब दिया कि मैंने महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना की है, लेकिन मेरा मन अशांत ही है। नारद मुनि ने कहा कि आपके महाभारत ग्रंथ में परिवार की लड़ाई है, युद्ध है, अशांति है, अवगुण हैं। इस वजह से आपका मन अशांत है। आपको ऐसा ग्रंथ रचना चाहिए, जिसको पढ़ने के बाद हमारा मन शांत हो, बुरे विचार खत्म हों। ऐसा ग्रंथ रचें, जिसके केंद्र में भगवान हों। ऐसा ग्रंथ, जिसका मूल सकारात्मक हो। नारद मुनि की बातें सुनने के बाद वेद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत कथा की रचना की। इस ग्रंथ को सकारात्मक सोच के साथ लिखा गया, इसके केंद्र में भगवान श्रीकृष्ण हैं। भगवान की लीलाओं की मदद से हमें संदेश दिया गया है कि हम दुखों का और परेशानियों का सामना सकारात्मक सोच के साथ करेंगे तो जीवन में शांति जरूर आएगी।
सर्वप्रथम किसने सुनाई भागवत कथा?
वेद व्यास जी ने इस ग्रंथ की रचना की और इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र शुकदेव को ये कथा सुनाई थी। बाद में शुकदेव जी ने पांडव अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को ये कथा सुनाई थी। शुकदेव जी ने ही अन्य ऋषि-मुनियों को भागवत कथा का ज्ञान दिया था। राजा परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दे दिया था कि सात दिनों के बाद तक्षक नाग के डंसने से उसकी मौत हो जाएगी। इस शाप की वजह से परीक्षित निराश हो गए थे, उनका मन अशांत था, तब वे शुकदेव जी के पास पहुंचे और अपनी परेशानियां बताईं। इसके बाद शुकदेव जी ने परीक्षित को भागवत कथा सुनाई। कथा सुनने के बाद परीक्षित की सभी शंकाएं दूर हो गईं, मन शांत हो गया और जन्म-मृत्यु का मोह भी खत्म हो गया।