उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक ओखली के संरक्षण के लिए ग्राम पंचायत नाला (कर्णधार) के फगुणु लाल (83) दिनरात एक कर रहे हैं। वे बरसात के मौसम में प्रतिदिन चार से पांच घंटे छेनी-हथौड़े से कठोर शिला को ओखली का रूप देने में लगे हुए हैं।
बुजुर्गों के अनुसार गांवों में पहले धान की नई फसल तैयार होने पर अनाज को ओखली में कूटकर खीर बनाई जाती थी, जिसे देवी देवताओं को भोग रूप में चढ़ाया जाता था। वहीं, केदारघाटी के नाला गांव के बुजुर्ग फगुणु लाल का कहना है कि एक फीट गहरी व चार से छह इंच चौड़ी ओखली को तैयार करने में छह से आठ दिन का समय लग जता है।