वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 पेश किया। सर्वेक्षण पेश करने के दौरान उन्होंने बताया कि, दुनियाभर में मंदी की आहट के बावजूद भारत की आर्थिक विकास दर अगले वित्त वर्ष यानी 2023-24 में 6.5% बनी रहेगी।
हालांकि, वित्त मंत्री ने संभावना जताई है कि, यह मौजूदा वित्त वर्ष के 7% और पिछले वित्त वर्ष यानी 2021-22 के 8.7% के आंकड़े से कम है। इसमें विकास दर कम रहने का अनुमान जताया गया है, लेकिन इसके बावजूद भारत विश्व में सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं वाले प्रमुख देशों में शामिल रहेगा।
आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि, कोरोना के दौर के बाद दूसरे देशों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेजी से रिकवरी की है। घरेलू मांग और पूंजीगत निवेश में बढ़ोतरी की वजह से ऐसा हो पाया है। हालांकि, सर्वेक्षण में चालू खाता घाटा बढ़ने की चिंता जताई गयी है, इसके अलावा वित्त मंत्री ने कहा कि, क्योंकि दुनियाभर में कीमतें बढ़ रही हैं। इसलिए रुपये पर दबाव रह सकता है। इसके अलावा अगर यूएस फेडरल रिजर्व ब्याज दर में इजाफा करेगा तो रुपये का अवमूल्यन होगा और कर्ज लंबे वक्त तक महंगा रहेगा।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि, भारत के पास पर्यात विदेशी मुद्रा भंडार है जिससे कि चालू खाते के घाटे तो वित्त पोषित किया जा सकता है। यानि रुपये के उतार-चढ़ाव को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि, कोरोना से निपटने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के पथ पर आगे बढ़ चुकी है। हालांकि महंगाई पर लगाम लगाने की चुनौती अब भी बरकरार है। यूरोप में जारी संघर्ष के कारण यह स्थिति बनी है। हालांकि आरबीआई के फैसलों के चलते खुदरा महंगाई दर आरबीआई के टॉलरेंस बैंड के नीचे आ गई है। बावजूद इसके दुनिया की अधिकांश मुद्राओं की तुलना में भारतीय करेंसी डॉलर के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रही है।
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि, केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय यानी कैपेक्स वित्तीय वर्ष 2023 के पहले आठ महीनों में 63.4 प्रतिशत बढ़ा है। इसमें पिछले साल की तुलना में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं जनवरी से नवंबर महीने के दौरान ECLGS से समर्थित एमएसएमई क्षेत्र में ऋण वृद्धि 30.6 प्रतिशत से अधिक रही है।