दोस्तों के गैर पेशेवर गैंग ने जिस तरह सुनियोजित साजिश रची है, यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। घटना बेशक 27 दिसंबर की शाम हुई। मगर शूटर नवंबर में यानि एक माह पहले अलीगढ़ आए। उस समय भी वे अक्तूबर में फरह से लूटी गई इसी कार से आए थे। संकेत हैं कि शूटर उसी समय संदीप की सुपारी लेकर सौदा पक्का कर गए थे। दीपावली के बाद संदीप का बहुत ज्यादा अलीगढ़ आना-जाना नहीं हुआ, इसलिए प्लान नहीं बन पाया। तब तक अंकुश व दुष्यंत की जोड़ी को प्लान बनाने व अन्य दोस्तों को जोड़ने का मौका मिल गया। जब पूरी प्लानिंग हो गई तो शूटरों को इशारा कर बुलाया और वारदात को अंजाम दिलाया गया।