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• Sat, 29 Jun 2024 1:53 pm IST


हिमालय क्षेत्र में मौजूद तालों की गहराई और क्षेत्रफल की नहीं जानकारी, अध्ययन जरूरी


प्राकृतिक तालों की गहराई और क्षेत्रफल की माप को लेकर अभी तक शासन व जिला स्तर पर कोई अध्ययन नहीं हो पाया है। जबकि स्थानीय ग्रामीण, क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और भू-वैज्ञानिक लंबे समय से इन तालों की माप कर जानकारी सार्वजनिक करने की मांग करते आ रहे हैं। जनपद में उच्च और मध्य हिमालय क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक झीलों की गहराई और क्षेत्रफल की प्रशासन, वन विभाग और जिला आपदा प्रबंधन के पास कोई जानकारी नहीं है। वर्ष 2002 से जनपद में मौजूद बधाधीताल, देवरियाताल और वासुकीताल की गहराई की माप और क्षेत्रफल के माप की मांग हो रही है। पर, इस दिशा में बीते 22 वर्षों से जि ला व शासन स्तर पर कोई कार्रवाई तो दूर कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है। उत्तराखंड से लगे हिमालय के उच्च व मध्य क्षेत्र में छोटी-बड़ी सैकड़ों झीलें होने की बात भू-वैज्ञानिक करते आ रहे हैं। जून 2013 की केदारनाथ आपदा का प्रमुख कारण भी चोराबाड़ी ताल को माना गया था। तब, ताल फूटने से पानी व मलबे के सैलाब से केदारपुरी, गौरीकुंड, सोनप्रयाग से लेकर अगस्त्यमुनि तक व्यापक तबाही हुई थी। वहीं, फरवरी 2021 में जनपद चमोली में ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने से भी भारी नुकसान हुआ था। इसके बाद, भू-वैज्ञानिकों ने माना था कि हिमालय क्षेत्र में झीलें हैं, जो कभी भी बड़े नुकसान का कारण बन सकती हैं, इन्हीं झीलों में हिमालय के उच्च व मध्य क्षेत्र से लगे रुद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ और जखोली विकासखंड में वासुकीताल, देवरियाताल और बधाणीताल भी मौजूद हैं।