बागेश्वर : पौराणिक धरोहरों को समेटे उत्तराखंड की काशी के नाम से प्रसिद्ध बागेश्वर में माघ माह में होने वाले उत्तरायणी मेले की अलग ही पहचान है. सरयू, गोमती और विलुप्त सरस्वती के संगम तट पर बसे शिवनगरी बागेश्वर में हर वर्ष उत्तरायणी का मेला लगता है. इसी कड़ी में आज रंगारंग झांकियों से उत्तरायणी मेले का आगाज हुआ. जिसमें जिलाधिकारी ने झांकियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.झांकी तहसील परिसर से गोमती पुल, स्टेशन रोड, कांडा माल रोड़, सरयू पुल, दूग बाजार होते हुए नुमाइशखेत पहुंची. झांकियों में दारमा के कलाकारों का नृत्य, स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झोड़ा, चांचरी और विभिन्न स्कूलों द्वारा पेश किया गया भांगड़ा और छोलिया नृतकों ने सभी का मन मोह लिया. वहीं, पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक काल से चलता आ रहा है. बाबा बागनाथ की यह धरती पावन धरती है. इसी पवित्र धरती से ही 1921 में अंग्रेजों के काला कानून कुली बेगार का अंत हुआ था. उन्होंने कहा कि वेदों में भी सरयू का उल्लेख है.विभिन्न क्षेत्रों से आए सांस्कृतिक दलों ने कुमाऊंनी संस्कृति और सभ्यता को झांकी के माध्यम से प्रस्तुत किया. सांस्कृतिक दलों की टोलियों ने बाबा बागनाथ मंदिर में भी पूजा-अर्चना की. झांकी में जोहार संस्कृति पर आधारित लोक संगीत आकर्षक का केन्द्र रहा. झांकी में विकास प्रदर्शनी सहित विद्यालयों के बैंड आदि ने भी प्रतिभाग किया.