उत्तराखंड सरकार वन्यजीवों की सुरक्षा के साथ ही वनाग्नि रोकने के लिए स्थानीय लोगों की मदद लेने जा रही है। इसके लिए गांवस्तर पर प्राइमरी रिस्पॉन्स टीम (पीआरटी) बनाई जाएंगी। वन्यजीव बोर्ड की 17वीं बैठक में यह निर्णय लिया गया। चिंता की बात है कि उत्तराखंड में पिछले 21 सालों में 144 बाघाें की मौत हो चुकी है।
मुख्यमंत्री ने अफसरों को इसकी गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि राज्य में 15 हजार से ज्यादा गांव हैं। इनमें से बड़ी संख्या में गांवों में वन्यजीवों के कारण फसलों को नुकसान होता है।
कई गांवों में वन्यजीव के हमलों से लोगों को जान तक गंवानी पड़ जाती है। साथ ही गर्मियों में वनाग्नि की घटनाओं से हजारों हेक्टेयर जंगल तबाह हो जाता है। इन पर रोक लगाने को गांवस्तर पर पीआरटी गठित की जाएंगी।
पहले चरण में संवेदनशील गांव चिह्नित कर, यहां चार-पांच युवक रखे जाएंगे, जिन्हें घर पर ही रोजगार देने की व्यवस्था की जाएगी। अभी मानदेय तय नहीं हुआ है, लेकिन इन्हें छह से सात हजार रुपये तक मानदेय के रूप में दिए जाएंगे।