उन्होंने भी सिर्फ दूध व अन्य डेयरी उत्पादों के लिए यह शुरुआत की थी। दूध के अलावा गाय का गोबर और गोमूत्र का कोई खास उपयोग नहीं हो पाता था। मगर, पुष्पा ने इसका सही उपयोग करने का मन बनाया। कुछ महिलाओं को साथ लेकर गोबर से दीये, स्वास्तिक, ऊं चिह्न व अन्य उत्पाद तैयार करने शुरू किए। एकलव्य वेलफेयर सोसायटी अठुरवाला के नाम से महिला समूह का गठन कर पिछले तीन माह से गाय के गोबर में मुल्तानी मिट्टी को मिलाकर दीये तैयार कर रही हैं। समूह की 15 से 20 महिलाएं प्रतिदिन दो से ढाई हजार दीये तैयार कर रही हैं, जिन्हें रंगों से सजाकर और आकर्षक बनाया जा रहा है। उनका कहना है कि पिछले कुछ समय से बाजार में मिट्टी के अलावा चीन निर्मित प्लास्टिक के दीयों का चलन भी बढ़ गया है। ऐसे में हम ग्राहकों को गाय के गोबर से बने स्वदेशी दीयों का विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं। इस्तेमाल के बाद इन दीयों को खेत, किचन गार्डन और गमलों में डाल सकते हैं, जो जैविक खाद के रूप में मिट्टी को उपजाऊ करने का काम करेंगे। उन्होंने बताया कि गोबर से जैविक खाद तथा गोमूत्र से फिनाइल तथा अर्क बनाने का काम भी उनका समूह कर रहा है।